इंसानी शरीर में मन का बड़ा प्रबल स्थान है,मन से ही प्राणी मानव कहलाता है यही स्वर्ग-नर्क मोक्ष व बंधन का कारण बनता है यह रेडियो की तरंगों व चैनलों की तरह यह प्रत्येक क्षण नये-नये हजारों विचार उत्पन्न करता है इसे सही दिशा मिलने पर यह व्यक्ति को महान बना सकता है सही दिशा न मिलने पर आत्मा का पतन कर अधोगति को प्राप्त होता है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मन को वश में करने के लिए वैराग्य की परम अवश्यकता के साथ बार-बार के अभ्यास से यह तीव्र मन वश में आ जाता है आंखें बाहरी जगत को देखने से यह अन्तर्मन में गहरा प्रभाव डालती है कार्य जैसा भी हो मन इन्द्रियों को आज्ञा देकर उस कार्य को पूरा करने के विवश करता है फिर इन्द्रिया बुद्धि व विवेक से उस कार्य को अंजाम देती है मनुष्य का मन एक दर्पण के समान है अच्छे व बुरे कर्मों कोई देखने की समझ रखता है फिर भी बार बार लोभ के कारण गलत रास्ते की और ही भागने का प्रयास करता है।व्यक्ति बार-बार असफलता की सीढ़ी चढ़कर व्यक्ति एक दिन सफलता की मंज़िल तक जा पहुंचता है इसके लिये मन को एकाग्र करने की आवश्यकता है कहा भी गया है यदि तबीयत से एक पत्थर भी उछाला जाये तो आसमान मे भी छेद हो सकता है। कबीरदास जी भी कहते हैं ॔मालाफेरत जुग भया गया न मन का फेर,करका मन का डार दे मनका -मनका फेर,,,, अर्थात प्रभुप्राप्ति के लिए लकड़ी की माला युगो तक फेरने से कोई लाभ न होगा जब तक मन की माला से भजन न होगा। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है मानसिक रोगो में यदि शरीर के स्तर पर इलाज किया जाये तो बेहतर परिणाम नहीं मिलते यदि मन का योग- ध्यान व प्राकृति के नजदीक रहकर ईलाज प्राप्त हो तो बेहतर लाभ व परिणाम मिलते हैं क्योंकि शरीर प्रकृति द्वारा निर्मित है। शरीर का स्वस्थ होना व मुस्कुराना चहरे पर आलक्षित होता है शरीर जड़ व मन चेतन है हरबर्ट बेंसर कहते हैं मन, बुद्धि,व शरीर का सम्बन्ध व सन्तुलित होना आवश्यक है मन नयी शक्ति के साथ नये उत्साह को जन्म देता है मन सोचता है कि मैं स्वस्थ हूं तो वह स्वस्थ महसूस करता है यदि सोचता है मैं बीमार हूं तो वह बीमार महसूस करता है यदि मन अभय- एकाग्र नहीं, तो काम कहीं, मन कहीं होता है तो किसी कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना मुश्किल होता है।महर्षि वाल्मीकि व गोस्वामी तुलसीदास जी के मन पर सदविचारो से संसार व शरीर की असारता व नश्वरता का ज्ञान हुआ तो उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया हम कोशिश कर मन को जीतकर,परावर्तित कर इस दुर्लभ मनुष्य देह से अपने लौकिक व पारलौकिक जीवन का भी कल्याण व उद्धार कर सकते हैं।
नरेश छाबड़ा
आ,वि, रूद्रपुर
8630769754

