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रुद्रपुर। प्रदेश महामंत्री राजेंद्र बिष्ट ने आज भाजपा कार्यालय बिगवाड़ा मे प्रेसवार्ता कर एमरजेंसी के 50 वर्ष पूर्ण होने पर बताया कैसे 25 जून 1975 को उस समय की इंद्रा गाँधी सरकार ने आधी रात को देश पर आपातकाल घोषित कर कुठाराघात कर लोकतंत्र की हत्या कर दी गई। यह निर्णय किसी युद्ध से कम नही था बल्कि चुनाव रद्द कर सत्ता को बचाने की आवश्यकता की भूख के मध्य नजर हताशा भरा कदम था।
प्रदेश महामंत्री बिष्ट ने कहा 1975 में आपातकाल की घोषणा कोई राष्ट्रीय संकट का नतीजा नहीं थी, बल्कि यह एक डरी हुई
प्रधानमंत्री की सत्ता बचाने की रणनीति थी, जिसे न्यायपालि का से मिली चुनौती से बौखला कर
थोपा गया।
उन्होंने कहा इंदिरा गाँधी ने‘आंतरिक अशांति ’ की आड़ लेकर अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग कि या, जबकि न
उस समय कोई युद्ध की स्थि ति थी, न वि द्रोह और न ही कोई बाहरी आक्रमण हुआ, यह सि र्फ इलाहाबाद
उच्च न्यायालय द्वारा इंदिरा की चुनावी सदस्यता रद्द करने के निर्णय को निष्क्रिय करने और अपनी कुर्सी
को बचाने की जिद थी।
बिष्ट बोले जिस संविधान की शपथ लेकर इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनी थीं, उसी संविधान की आत्मा को कुचलते
हुए उन्होंने लोकतंत्र को एक झटके में तानाशाही में बदल दिया और चुनाव में दोषी ठहराए जाने के
बाद नैतिकता से इस्तीफा देने के बजाय पूरी व्यवस्था को ही कठपुतली बनाकर रखने का षड्यंत्र रच
दिया।
उन्होंने कहा कांग्रेस सरकार ने कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका सहित लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को
बंधक बनाकर सत्ता के आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। प्रेस की स्वतंत्रता पर ऐसा हमला
हुआ कि बड़े-बड़े अखबारों की बिजली काट दी गई, सेंसरशिप लगाई गई और पत्रकारों को जेल में
डाल दिया गया।

प्रदेश महामंत्री राजेंद्र बिष्ट बोले आज भी कांग्रेस शासित राज्यों में कानून व्यवस्था का हाल यह हैकि वहाँ विरोध का दमन,
धार्मिक तुष्टीकरण और सत्ता का अहंकार खुलेआम दिखता है। यह सब आपातकालीन सोच की ही
उपज है।
‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा’ जैसे नारा कांग्रेस की उस मानसिकता को दर्शाते थे जिसके
तहत इंदिरा गाँधी ने देश को व्यक्ति -पूजा और परिवारवाद की प्रयोगशाला बना दिया था।
उन्होंने आपातकाल के दौरान एक परिवार को संविधान सेऊपर रखनेवाली कांग्रेस आज भी
‘राहुल-प्रियंका’ के इर्द-गिर्द सिमटी हुई हैऔर सत्ता की चाबी अब भी सिर्फ खानदानी जेब में रखी
जाती है। वि पक्षी गठबंधन की बैठकेंआज भी कांग्रेस अध्यक्ष के घर होती हैं और यह बताने के लिए काफी
है कि ‘तंत्र’ आज भी परिवार के चरणों में समर्पित है।
लोकतंत्र पर हुए आघात पर एक बड़ी चोट संजय गाँधी का नीतियों पर निर्णय लेना भी था। एक निर्वाचित
और किसी भी संवैधानिक पद पर न रहा व्यक्ति देश की नीतियों पर निर्णय लेने लगा, जो
आपातकाल में कांग्रेस की अघोषित सत्ता का असली केंद्र बन चुका था।
इंदिरा ने मीसा जैसे काले कानूनों केजरि ए एक लाख सेअधिक नागरिकों को बिना कि सी
मुकदमे के जेलों में ठूस दिया, जिनमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण
आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और श्री राजनाथ सिंह सहित तमाम वरिष्ठ विपक्षी नेता, पत्रकार तो
शामिल थे ही, लेकिन कांग्रेस शासन ने छात्रों तक को जेल में सड़ने पर मजबूर कर दि या था।
आपाताकाल के इस काले दौर में कांग्रेस ने न्यायपालिका पर कभी न भरने वालेघाव किए। इंदिरा गाँधी
ने जस्टिस एच.आर. खन्ना जैसे ईमानदार जज को सीनियर होने के बावजूद मुख्य न्यायाधीश
नहीं बनाया, क्योंकि उन्होंने सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया था।
बिष्ट बोले इंदिरा गाँधी ने अपनी सत्ता को महफूज रखने के लिए संविधान में 39वा और 42वा जैसा क्रूर और
अलोकतान्त्रिक संशोधन किया जिसके तहत प्रधानमंत्री और अन्य शीर्ष पदों को न्यायिक समीक्षा
से कर दिया, ताकि इंदिरा गाँधी को अदालत में घसीटा न जा सके।
2024 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने बाकायदा बहिष्कृत पत्रकारों की लिस्ट जारी की थी जिनकी
डिबेट में जाने से कांग्रेस प्रवक्ताओं को मना कि या गया था। जहाँ एक ओर तो ये अपने शासन में
पत्रकारों पर मुकदमे करते हैं वहीं दूसरी वि पक्ष में होने पर उनका बहिष्कार कर देते हैं।
सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाना और देश की छवि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खराब
करना कांग्रेस की नई ‘डिजिटल इमरजेंसी’ रणनीति बन चुकी है। जब देश हर मोर्चे पर प्रगति कर रहा
है, तब कांग्रेस सरकार की हर उपलब्धि को झुठ लाने में लगी है, यह वही नकारात्मक मानसिकता है
जि सने1975 में देश को पीछे खींचा था।
देश की सुरक्षा, सैन्य कार्रवाई या विदेश नीति पर कांग्रेस जिस तरह सेना पर सवाल उठाती है,
वह केवल राजनीति क अवसरवाद नहीं, बल्कि राष्ट्रहि त केवि रुद्ध तर्कहीन वि रोध है।
न्यायपालिका में हस्तक्षेप, ‘फ्री स्पीच’ केनाम पर अराजकता और मीडि या ट्रायल को बढ़ावा
देकर कांग्रेस आज नए तरीकों सेवही आपातकाल लागूकरना चाहती है।
कांग्रेस जिन संस्थाओं को लोकतंत्र का रक्षक कहती है, उन्हीं संस्थाओं को अपने शासन में रबर
स्टैम्प बना देती है। यह दोहरापन आज भी उनकी राजनीति में स्पष्ट दिखाई देता है।
कांग्रेस पार्टी और गाँधी परिवार की मानसिकता आज भी ‘हम ही राष्ट्र हैं’ की सोच से बंधे हैंऔर
यही कारण है कि उन्हें जनता का स्पष्ट बहुमत भी हमेशा ‘लोकतंत्र का संकट’ नजर आता है।
भ्रष्टाचार के मामलों में जब भी गाँधी परिवार पर जांच होती है, कांग्रेस ‘लोकतंत्र खतरे में है’ का शोर
मचाती है, याद कीजिए यही भाषा इंदिरा गाँधी ने अदालत सेअयोग्य घोषित होने के बाद अपनाई थी।
जब-जब कोग्रेस को सत्ता से बाहर किया गया है, उसने न जनादेश का सम्मान कि या है, न विपक्ष
की गरिमा बनाए रखी है। वह आज भी लोकतंत्र को तभी मानती है जब कुर्सी उसके पास हो।

इस दौरान प्रेसवार्ता मे जिला अध्यक्ष कमल जिंदल, पूर्व विधायक प्रेम सिंह राणा, पूर्व मेयर रामपाल, जिला महामंत्री अमित नारंग, जिला मीडिया प्रभारी मयंक कक्कड़ मौजूद रहे।

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