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आज समीर फिर कुछ उदास लग रहा था सीमा ने पूछा क्या हुआ जी उसने कहा कि आज फिर काम नहीं मिला क्या। सीमा बोली कोई बात नहीं आप हाथ मुंह धो लीजिए मैं आपके लिए भोजन परोस देती हूं आखिर कब तक ऐसे चलेगा सीमा, ऐसे, समीर ने कहा,जो नन्ही जान तुम्हारे पेट में भी पल रही है उसके बारे में भी तो सोचना है सीमा समीर की आंखों में देखकर हाथ हिलाकर बोली आप कोशिश तो कर ही रहे हो कोई बात नहीं आज नहीं तो कल एक न एक दिन नौकरी आपको अवश्य मिल ही जायेगी । सीमा बोली शादी से पहले मैंने मां बहुत सी खाना बनाने की रेसिपी सीखी थी और फिर मैने तो ग्रहविज्ञान से ग्रेजुएशन किया है वह कब काम आयेगा सीमा हंसते हुए बोली समीर मैंने सोचा है कि हम घर से ही टीफिन सर्विस का काम शुरू करते हैं ऐसा अचानक कैसे हो सकता है सीमा कुछ देर सोचकर समीर ने अपने हाथ की अंगुलियां से अपने होंठ दांतों में दबाये फिर उसकी हां में हां मिलाई चलो ठीक है,सीमा टीफिन तैयार करती और समीर बाहर से आर्डर व सामान भी ले आता साथ ही टिफिन सप्लाई का काम करता सीमा के हाथ के बने भोजन की सभी ग्राहक तारीफ़ करते हाथों से पीसे मसाले साम्रगी का उचित तालमेल उसके बने खाने को और अधिक लजीज और खास बनाता था देखते ही देखते दिन बीतने लगे उनके काम में इजाफा और मुनाफा भी बढ़ने लगा अब दोनों को काम से फुर्सत न मिलती इस काम से उन दोनो की आंखों में आशाओं भरे अरमान थे उनकी जिंदगी अब धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी थी मानो उनकी मेहनत सही सोच सही तालमेल व कर्मठता को जैसे पंख लग गए थे।अब दोनो अपने इस काम से संतुष्ट थे।
           प्रस्तुति,, नरेश छाबड़ा आवास-विकास

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