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पिथौरागढ़। 5 सितंबर 2025(कुमौड़)
कुमाऊँ की सांस्कृतिक धरोहरों में अग्रणी हिलजात्रा पर्व आज भी अपनी प्राचीन परंपराओं और आस्था के साथ जीवित है। यह पर्व किसानों और पशुपालकों के जीवन से जुड़ा हुआ है, जिसमें उनकी मेहनत, लगन और धरती माँ के प्रति श्रद्धा झलकती है।
हर साल सावन-भादो के महीने में जब घाटियों में ढोल-नगाड़ों की थाप गूंजती है और लोकगीतों की धुन पर लोग थिरकते हैं, तो पूरा इलाका मानो जीवंत इतिहास में बदल जाता है। हिलजात्रा में विशेष रूप से मुखौटा नृत्य, पारंपरिक झाँकियाँ और लोककलाओं का अनूठा प्रदर्शन होता है, जो पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा को नई ऊर्जा देता है।
स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि यह पर्व सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है। “जहाँ लोकधुनों में इतिहास गूंजे, वहीं हिलजात्रा की आत्मा बसती है,” उनका कहना है।
युवा पीढ़ी भी इस पर्व को लेकर उत्साह से भरी रहती है। पारंपरिक परिधानों में सज-धजकर लोग जब जुलूस निकालते हैं तो रंगों और श्रद्धा का ऐसा संगम दिखाई देता है, जो पिथौरागढ़ की सांस्कृतिक पहचान को और प्रखर बना देता है।
हिलजात्रा न केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि परंपराएँ आज भी हमारे समाज की धड़कन में जीवित हैं।

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