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झूठे आरोपों का हुआ पर्दाफाश
“सत्य परेशान हो सकता है,लेकिन पराजित नहीं–सत्यमेव जयते”

नैनीताल (ब्यूरो)। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने रुद्रपुर नगर निगम के पूर्व मेयर रामपाल सिंह के खिलाफ दर्ज एक पुराने आपराधिक मामले को खारिज करते हुए उन्हें बड़ी राहत दी है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोप भारतीय दंड संहिता की धाराओं की कानूनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते और इस प्रकार मामले में आगे की कार्यवाही न्याय के मूल सिद्धांतों के विपरीत होगी।

यह मामला वर्ष 2019 की एफआईआर संख्या 152/2019 से जुड़ा है, जिसे केपी गंगवार नामक व्यक्ति ने रुद्रपुर कोतवाली में दर्ज कराया था। आरोप लगाया गया था कि श्री रामपाल सिंह ने ₹10 लाख की रंगदारी मांगी और न देने पर झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दी।

किच्छा रोड स्थित सरकारी भूमि को लेकर हुआ था विवाद

मामले की तह तक जाने पर सामने आया कि किच्छा रोड स्थित कुष्ठ आश्रम के बराबर में स्थित एक खाली सरकारी भूखंड को केपी गंगवार द्वारा अवैध रूप से कब्जा करने का प्रयास किया गया था। उस समय नगर निगम के मेयर रामपाल सिंह ने नगर की संपत्ति की रक्षा हेतु, उस अवैध कब्जे को हटवाने की विधिसम्मत कार्रवाई की थी। इसी कानूनी कार्रवाई से नाराज होकर केपी गंगवार ने उनके खिलाफ यह झूठा और दुर्भावनापूर्ण आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया।

केपी गंगवार को पूर्व में जिला प्रशासन द्वारा ‘तड़ीपार’ किया जा चुका है। इस तथ्य ने उसकी शिकायत की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया।

उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने यह भी इंगित किया कि चार साल की असामान्य देरी से दायर विरोध याचिका, और आरोपों में आवश्यक तथ्यों की अनुपस्थिति, यह दर्शाते हैं कि यह मामला व्यक्तिगत द्वेष और राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित था।
पूर्व मेयर रामपाल सिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विपुल शर्मा ने न्यायालय में यह तर्क प्रस्तुत किया कि शिकायतकर्ता स्वयं नगर निगम की भूमि पर अवैध कब्जा किए हुए था। श्री सिंह ने अपने पद का दुरुपयोग नहीं बल्कि नगर निगम की संपत्ति की रक्षा हेतु पूरी तरह वैध और कानूनी कार्रवाई की थी।
अदालत ने पाया कि प्राथमिकी में न तो कोई वित्तीय लेन-देन सिद्ध होता है, न ही किसी प्रकार की कानूनी रूप से मान्य धमकी। ऐसे में निचली अदालत द्वारा पारित संज्ञान आदेश दिनांक 19 जून 2024 को रद्द करते हुए, उच्च न्यायालय ने आपराधिक मुकदमा को भी पूरी तरह से खारिज कर दिया।

इस निर्णय को लेकर सामाजिक और राजनीतिक हलकों में भी व्यापक चर्चा है। यह फैसला उन जनप्रतिनिधियों के लिए एक मिसाल है जो ईमानदारी से कार्य करते हैं लेकिन झूठे मुकदमों का सामना करते हैं। यह सच्चाई की जीत और न्यायपालिका की निष्पक्षता का परिचायक है।

फैसले के बाद श्री रामपाल सिंह ने कहा –
“यह सिर्फ मेरी नहीं, पूरे समाज और सच की जीत है। मैंने हमेशा ईमानदारी से काम किया और जनता की संपत्ति की रक्षा को अपना कर्तव्य माना। मुझे खुशी है कि सच्चाई आज जनता के सामने आ गई ।।

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