
भारत रत्न महामना मदनमोहन मालवीय एक भारतीय विद्वान राजनीतिक और शिक्षा-सुधारक थे इनका जन्म 25 दिसम्बर1861 को प्रयागराज में हुआ उन्होंने 4 फरवरी1916 को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना कर देश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के नये आयाम स्थापित किए साथ ही सर्वप्रथम उन्होंने हरिद्वार में गंगा-आरती की शुरुआत की ।वह श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा के संस्थापक थे माता मूना देवी के धार्मिक विचारो का प्रभाव इनके जीवन पर अत्यधिक गहरा प्रभाव था यही से उनकी सोच पर हिन्दू धर्म व भारतीय संस्कृति का गहरा प्रभाव पड़ा वह पहले व अंतिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की उपाधि से विभूषित किया गया एक राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मदन मोहन मालवीय के जीवन की शुरुआत वर्ष 1889मे कलकत्ता में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में भाग लेने से हुई 1909मे वह पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने अध्यक्ष बने। वह हनुमान जी के भक्त थे व कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव का पर्व सच्चे मन से निश्चल हृदय से बड़ी धूमधाम से मनाते थे पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृभाषा तथा भारत माता की सेवा अपना समस्त जीवन अर्पण कर दिया मालवीय जी सत्य ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति और आत्मत्याग में एक अद्वितीय आदर्श महापुरुष थे वह न केवल उपदेश देकर बल्कि उन उपदेशों को अपने आचरण में भी अक्षरतः पालन करते थे उन्होंने देश की अनेक संस्थाओं के जनक व संचालक के रूप में कार्य कर अपना अनुपम योगदान दिया 12नवम्बर 1946को लम्बी बीमारी के चलते इनका निधन हो गया यह युगपुरुष सदा के लिए अनन्त में विलीन हो गया सन् 2015 मे राष्ट्रीय प्रणव मुखर्जी द्वारा मरोणोपरान्त देश व समाज की अतुलनीय सेवा व योगदान को रेखांकित करते हुए भारतवर्ष के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया निष्काम कर्म ही उनका जीवन था उनका सम्पूर्ण जीवन ही देश व दुनिया के लिए एक प्रेरणा स्रोत व एक अनुपम उदाहरण है ।
प्रस्तुति –नरेश छाबड़ा
आवास-विकास रूद्रपुर
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