— नदी — केवल जल नहीं, जीवनदायिनी माँ

भारतीय संस्कृति में नदियाँ केवल जल की धाराएँ नहीं, ‘माँ’ के रूप में पूजनीय रही हैं।
गंगा, यमुना, सरस्वती — सभी को “मैया” कहकर पुकारा जाता है।
क्योंकि ये नदियाँ बिना भेदभाव जीवन देती हैं — जैसे एक माँ अपने बच्चों को पालती है।
विद्यालय दृष्टिकोण
- चिल्ड्रन पैराडाइज पब्लिक स्कूल, अस्कोट
प्रधानाचार्य: दिनेश चंद्र जोशी “नदियों को ‘माँ’ कहना केवल आस्था नहीं, एक नैतिक शिक्षा है।
यह भाव बच्चों को प्रकृति से प्रेम और संरक्षण की भावना सिखाता है।” - JK पब्लिक स्कूल, बलुवाकोट
प्रिंसिपल: गोविंद ऐरी
“नदियाँ संस्कृति की धार हैं।
उन्हें ‘माँ’ कहना हमारी संवेदनशील और संतुलित सोच का हिस्सा है।”
पौराणिक दृष्टिकोण — हरीश पोखरिया की दृष्टि से
हरीश पोखरिया, निवासी – जौलजीवी (पिथौरागढ़) “यह केवल जल नहीं, जल-देवी है।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी गोपियों से कहा था —
नदी में स्नान केवल शरीर नहीं, मन की भी पवित्रता है।”
समाजसेवियों और जनप्रतिनिधियों की राय
गौरव पंत, नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान, कांडा कन्याल (जिला बागेश्वर)
“नदियों को स्त्री रूप में सम्मान देना हमारी सनातन सोच है।
यह परंपरा हमें प्रकृति से जोड़े रखती है।”
नारायण सोराड़ी, पूर्व सैनिक व प्रदेश संगठन मंत्री – गौ रक्षक सेना भारत (उत्तराखंड)
“नदियाँ केवल जल नहीं, जीवन और पर्यावरण का आधार हैं।
उन्हें ‘माँ’ कहना हमारी श्रद्धा और जिम्मेदारी दोनों को दर्शाता है।”
तरुण पाल, संयोजक – ग्रामीण एकता मंच अस्कोट,पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष, राज्य आंदोलनकारी
“जो जीवन दे, उसे ‘माँ’ कहते हैं —
चाहे वह जन्म दे या जल।”
निष्कर्ष खबर पड़ताल
भारत की नदियाँ श्रद्धा, संस्कृति और जीवन की धाराएँ हैं।
जब तक उन्हें देवी और माँ का दर्जा मिलेगा,
वे हमें जीवन, शुद्धता और संतुलन देती रहेंगी।






