श्रीनगर गढ़वाल। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित गोपीनाथ मंदिर भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों में से एक है, यहां पर भगवान शिव की पूजा गोपेश्वर महादेव यानि गोपी के रूप में की जाती है। यह मंदिर नवी और 11 वीं शताब्दी में कत्यूरी वंश के शासकों ने बनवाया था। आज आपको ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी गोपीनाथ मंदिर के विषय एवं महत्व में जानकारी दे रहे हैं चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का गोपीनाथ मंदिर अपनी पौराणिकता और विशाल बनावट के लिए प्रसिद्ध है। इसके साथ कई रहस्य भी जुडे़ हैं। भगवान शिव के इस दिव्य और भव्य मंदिर का निर्माण आज से कई शताब्दी पूर्व नवी और ग्यारहवीं शताब्दी में कत्युरी वंश के शासकों ने करवाया था। गोपीनाथ मंदिर भगवान शंकर का 5 मीटर का त्रिशूल,फेंककर किया था कामदेव को भस्म किया था। मंदिर अपने वास्तु के कारण अलग से पहचाना जाता है,इसका एक शीर्ष गुम्बद और 30 वर्ग फुट का गर्भगृह है,जिस तक 24 द्वारों से पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा अर्चना गोपी रूप में की जाती है। इस मंदिर प्रांगण में चारों तरफ आंशिक रूप से खंडित मूर्तियां और कई दिव्य शिवलिंग विराजमान हैं। बताया जाता है कि इस मंदिर का आकार उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध शिव मंदिरों केदारनाथ और तुंगनाथ से मिलता जुलता है। मंदिर के ऊपर बना कई फीट ऊंचा गुंबद गर्भगृह का निर्माण करता है। यहां मंदिर परिसर में पांच मीटर लंबा त्रिशूल भी मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शिव ने काम के देवता कामदेव को इसी त्रिशूल को फेंकर कर भस्म किया था। मंदिर की बनावट के लिए इस्तेमाल किए गए पौराणिक पत्थरों पर लिखी पुरानी भाषा इस मंदिर की पुरातनता का प्रमाण है। मंदिर परिसर में चारों तरफ दीवारों पर पुरानी भाषाओं में कुछ मंत्र लिखे हुए हैं ऐसा माना जाता है कि यह मंत्र दशकों पूर्व जब इस मंदिर का निर्माण हुआ होगा तब ही लिखे गए हैं। लिखे गए मंत्रों की भाषा लोगों के समझ में नहीं आती है। यह भाषा काफी प्राचीन है और उस समय लिखी गई है जब इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। इसलिए यह बता पाना मुश्किल होता है कि मंदिर की दीवारों पर क्या लिखा हुआ है। दन्तकथा है कि जब भगवान शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह यहां गढ़ गया। त्रिशूल की धातु अभी भी सही स्थित में है जिस पर मौसम प्रभावहीन है और यह एक आश्वर्य है। यह माना जाता है कि शारिरिक बल से इस त्रिशुल को हिलाया भी नहीं जा सकता,जबकि यदि कोई सच्चा भक्त इसे छू भी ले तो इसमें कम्पन होने लगता है। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर में परशुराम व भैरव की प्रतिमा भी मौजूद है। मंदिर के कुछ दूरी पर वैतरणी नामक कुंड है। मंदिर के आंगन में शक्ति त्रिशूल भी है,जिस पर फरसा भी मौजूद है। इस त्रिशूल को यदि तर्जनी उंगली से छुआ जाए तो त्रिशूल पर कंपन्न होने लग जाता है। इस मंदिर में शीतकाल के दौरान रुद्रनाथ जी की उत्सव मूर्ति भी विराजमान होती है। मंदिर को उत्तराखंड के दूसरे सबसे ऊंचे मंदिर होने का भी गौरव है। मंदिर की परक्रिमा स्थल पर कई शिवलिंग मौजूद हैं। अनुसूया प्रसाद भट्ट (अध्यक्ष मंदिर समिति गोपीनाथ मंदिर) ने बताते हैं कि गोपीनाथ मंदिर पौराणिक मंदिरों में से एक है। यहां पर वर्षभर श्रद्धालु आते हैं। शिव के साक्षात दर्शन होते हैं। यहां श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है। पुरातत्व महत्व के इस मंदिर परिसर में पहाड़ी शैली की भवन कला को भी देखा जा सकता है। गोपीनाथ मंदिर में पूजा करने से भक्तों का मानना है कि गोपीनाथ मंदिर में शिव उन्हें बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जाओं से पूरी तरह सुरक्षा प्रदान करते हैं। वे मोक्ष प्राप्ति में मदद करते हैं। आचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ज्योर्तिविद ग्राम कोठियाडा,पो.ओ-बरसिर,रुद्रप्रयाग/श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान उत्तराखंड।







