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प्राचीन काल से वर्तमान तक भारत वर्ष में गुरु -शिष्य व गुरु पूजा की महान परंपरा रही है संसारिक दृष्टि से बालक की प्रथम गुरु उसकी मां कहलाती है जो उसे चलना-फिरना बोलना, पढ़ना सिखाती है मां के व्यक्तित्व की छाप बालक के जीवन पर बड़ी गहराई तक पड़ती है जिससे वह मां का छाया-प्रतिरूप कहलाता है तत्पश्चात हम विद्यालय व कालेज में शिक्षकों से शिक्षा ग्रहण करते हैं जो हमारे जीवकोपार्जन के लिए भी आवश्यक होती है जीवन की डगर पर हम जैसे जैसे आगे बढते हैं वैसे-वैसे हमें अपने जन्म लेने के उद्देश्य का भी आत्मज्ञान नहीं होता जब समय के किसी किसी उच्च समय के आध्यात्मिक सदगुरु की शरण मिलती है तब सत्संग के माध्यम से वह हमें जीवन के उद्देश्य व जीवन के कल्याण के बारे में जानकारी देते है व सदगुरु,नाम- दीक्षा देकर एक नये जीवन का निर्माण करने की प्रक्रिया में सहभागी बनते हैं सहजोबाई द्वारा भी कहा गया है ,,,साध संगत में चांदना सकल अंधेरा और,, सहजों दुर्लभ पाइये सत्संगत में ठौर।।जो हमें परमात्मा से मिलन में सहयोगी बनतीं है। गुरु को महत्व व सम्मान देने के लिए व्यास पूजा का पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को यह विशेष रूप से मनाया जाता है। हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व हमेशा रहा है क्योंकि कहा भी गया है गुरु बिन गत नहीं, शाह बिन पत नहीं ,भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से बढ़कर माना गया है गुरु शब्द का अर्थ है कि जो हमें अज्ञान रूपी अंधकार से निकालकर ज्ञान रूपी प्रकाश की और ले जायें। गुरु के अभाव में हमारा जीवन शून्य के समान है गुरु अपने शिष्यो से कोई स्वार्थ नहीं रखते जब शिष्य उन्नति करता है तब गुरु अपने ऊपर गर्व होता है। संस्कार व शिक्षा जीवन का मूल स्वभाव होता है गुरु ज्ञान का कोई तोल नहीं है मीरा बाई के गुरु रविदास, कबीर दास के गुरु रामानंद , तुलसीदास के नरहरिदास सूरदास के गुरु श्री वल्लभाचार्यजी थे वर्तमान समय में श्रीआनन्दपुरधाम के श्री परमहंस दयाल जी महाराज,ब्यास के राधास्वामी जी महाराज ,आशुतोष महाराज जी निरंकारी जी महाराज व प्रेमानंदजी महाराज आदि गुरु जो समाज में प्रेम भक्ति व ज्ञान का आलोक फैला रहें हैं। गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं गुरु के सानिध्य में व्यक्ति जीवन में बड़े -बड़े लक्ष्य व चुनौतियां का सामना करने में सक्षम जाता है क्योंकि गुरु में शिष्य परीक्षा के साथ साथ वत्स लय भाव की प्रधानता होती है वह अपनों भक्तों के सदा अंग- संग रहते हैं व हमेशा एक माता की भांति उनकी सदैव रक्षा करते हैं यह गुरु के दर्शन, वंदना, आराधना, आज्ञापालन व सम्मान का पर्व है इसे सभी भक्तों,जिज्ञासुओं को बड़ी श्रद्धा भक्ति, दृढ़ता व विश्वास से मनाना चाहिए व आप सभी को गुरु पूर्णिमा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है। गढ़ि गढ़ि काढै़ खोट।।
अन्तर हाथ संहार दै। बाहर बाहें चोट।।

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