योग,प्रयोग की विधा है योग यू तो दो अक्षरों का योग है जब मनुष्य योग से जुड़ता है तो वह इसके लाभों से परिचित होता है आसन के बाद प्राणायाम में भ्रामरी व उदॣगीत के बाद मौन स्थति आती है तब जो मस्तिष्क में शांति व सुख प्राप्त होता है सुख -शान्ति व आनन्द का जो अमृत कलश जो मस्तिष्क में छलकता है वह संसार की तमाम भौतिक सम्पदाओ व आपार धन के सुख से भी प्राप्त नहीं हो सकता योग द्बारा प्राप्त सुख अवर्णनीय है भारत शब्द का अर्थ ही है। कि जो हमेशा ज्ञान प्राप्त करने में रत रहे वहीं भा-रत है वसुधैव कुटुम्बकम व विश्व बंधुत्व की भावना की धारणा भारतवर्ष से निकली है भारत,समस्त विश्व को अपना परिवार मानता है न कि एक बाजार। योग भारत की दिव्य विधा है और यही भारत की दिव्यता है योग विश्व के लिए भारत की एक अनमोल धरोहर है जो समस्त संसार के लोगों को आपस में जोड़ता है योग मानवता के लिए श्रेष्ठ है,योग से न केवल शारीरिक क्षमताओं को ही नहीं बढ़ाया जा सकता वरन यह अध्यात्मिक,मानसिक- बौद्धिक स्वास्थ्य के लिए भी अद्वितीय है इसमें रोग -हरण व रोग रिकवरी कि अद्वितीय क्षमता है यह केवल पूरे शरीर को एक ईकाई मानकर इसका इलाज करता है न कि अलग अलग पार्ट का। योग विश्व- बंधुत्व की भावना को भी बढ़ाने में अपना पूर्ण योगदान देता है यह शरीर की सक्रियता- सजगता व विल-पावर को बढ़ाकर किसी भी गुण को बढ़ाने में सक्षम है गीताजी के प्रत्येक अध्याय में योग समाया है जैसे मै तू है,तू ही मैं हूं जैसे भाव समस्त मानवता को आपस में प्रेम के एक सुत्र में बांधने का प्रयास करते हैं भारतीय योग त्रटषियोग समान्य से उच्च अवस्था पर आरूढ़ करने की विधा है मानवीय अज्ञात भय , आपदाये , विश्व पटल पर युद्ध की विभीषिकाएं में योग व्यक्तियों को मानसिक व शारीरिक रूप से सहारा देता है अंतर्राष्ट्रीय-पटल पर योग के प्रचार-प्रसार में भारत सरकार व आयुष मंत्रालय व उनसे जुड़ी संस्थाओं का योगदान अतुलनीय है जो मनुष्यो की सुख शांति बढ़ाने में प्रयास रत है।