भारतवर्ष मे आवारा कुत्तो की संख्या मे प्रतिदिन वृद्भि होती जा रही है जिससे डाग-बाइट की समस्या भी बढती जा रही है कभी भोपाल मे बच्ची पर आवरा कुत्तो का हमला,सुबह मोर्निंग वाँक के लिए निकले बाध बकरी चाय कम्पनी के डायरेक्टर पराग देसाई की कुत्तो के अटैक से पत्थर पर गिरने से व ब्रेन हमरेज होने से मत्यु,एक कोर्ट के एक वकील के हाथ पर हमला आदि खबरे न्यूज पेपर मे अक्सर पढ़ने को मिल जाती है रेबीज बीमारी से लगभग 95 प्रतिशत कुत्तो के काटने से मौते हो जाती है।लोमडी़ बिल्ली,बंदर,चमकादड़ आदि के काटने से भी रेबीजजन्य संक्रमण हो सकता है छोटे बच्चे,बुजुर्ग महिलाएं पुरुष ही अक्सर आवारा कुत्तो का शिकार बनते है सड़को पर धुमते ,झुंड के झुंड आवारा कुत्ते किसी को भी अकेले पाकर धावा बोल देते है व चलती गाडि़यो के पीछे दौड़ना लोग उस समय अपने आप को असहाय पाते है व चोटिल हो जाते है धबराहट मे आकर व बेबस हो इनका शिकार आसानी से बन जाते है।आई, पी,सी,की धारा 428,429 मे भी आवारा कुत्तो के साथ भी नम्रता के साथ पेश होने की बात करता है।आवारा कुत्तो के खिलाफत का कोई कानूनी अधिकार नही है।वरन इन कुत्तो को दंडित करने पर 2 साल की सजा का प्रावधान है।वास्तव मे इन्हे नियंत्रित करने की जिम्मेदारी नगर निगम की है।इन्हे स्ट्रेलाडज करने ,बर्थ कंट्रोल की प्रक्रिया,वेक्सीनेशन कराना ,टेग करके आवारा कुत्तो से सुरक्षा की जिम्मेदारी नागरिको को नगर निगम को प्रदान करने की होनी चाहिये जिससे समस्त नागरिक स्वछंदता से विचरण कर सके कुत्ते काटने का दर्द अत्यन्त दुःखदायी व भय पैदा करने वाला व शरीर मे सिहरन पैदा करने वाला होता है इसे इससे पीडित व्यक्ति ही इसे समझ सकता है।जिस प्रकार से आवारा कुत्तो की संख्या मे बेतहाशा वृद्भि होती जा रही है उसके लिये नगर निगम को सक्रिय होने की व नागरिको को जागरूकता व सजग होने की आवश्यकता है ,नही तो इनकी उत्तोत्तर वृद्धि मानव-जीवन के लिये अत्यन्त धातक सिद्ध होगी।