जांच के नाम मात्र खानापूर्ती
खेतों में नहीं दिख रहे हैं औषधीय और अन्य पौधे
शुष्क जमीन में पैदा होने वाले पौधे जल मग्न धरती में बोकर लगाया जा रहा है चूना
गदरपुर । विगत दिनों आरटीआई कार्यकर्ता ने मुख्य विकास अधिकारी उधम सिंह नगर को सोशल मीडिया के माध्यम से पत्र लिखा था कि जिले में भेषज विकास इकाई उद्यान विभाग में प्रत्येक वर्ष औषधीय पौधों के वितरण से टेंडर प्रक्रिया में व्यापक रूप से धांधली की जा रही है जिसकी कमेटी के माध्यम से जांच की मांग की गई थी ।जिस पर सीडिओ उधम सिंह नगर ने मुख्य उद्यान अधिकारी को जांच कराने के निर्देश दिए थे जिसके क्रम में मुख्य उद्यान अधिकारी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन कर जांच शुरू करते हुए तीन बिंदुओं पर जांच की जा रही है।वित्तिय वर्ष में पौधों का वितरण, टेण्डर प्रक्रिया व मौके पर किसानों के खेत स्थलीय निरीक्षण सहित मेसर्स समृद्धि हर्ष को ही बार बार पौध आपूर्ति का ठेका क्यों दिया जाता है ?
जिसकी जांच प्रारम्भ कर दिया गया लगता है सारी प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई है ।इधर आरटीआई कार्यकर्ता का कहना है कि जांच अधिकारी द्वारा जांच से पहले ही पौध आपूर्तिकर्ता के पक्ष में बात किया जाना,जांच निष्पक्ष होने में शंका पैदा कर रहा है । जांच अधिकारी सुभाष रॉयल का जांच से पूर्व ही ठेकेदार के लिए सहानुभूति दिखाना भी जांच की अंतिम रिपोर्ट की स्थिति बयां कर रहा है।शिकायतकर्ता का यह भी कहना है कि औषधिय पौधों की गुणवत्ता आदि की जांच फलदार पौधों से सम्बंधित अधिकारी कैसे समझ सकते हैं?
पौधा रोपण किए जाने को प्रोत्साहन देने हेतु जब मीडिया कर्मियों द्वारा एक वरिष्ठ समाजसेवी के सहयोग से कुछ गांव का निरीक्षण करने के दौरान जनप्रतिनिधियों से संपर्क किया गया तो कहीं भी पौधारोपण वृक्षारोपण या उनके संरक्षण की बात सामने नहीं आई । लगता है हजारों लाखों पौधों को कागजों में ही वितरण,रोपण,संरक्षण दिखाकर उनका कटान भी दिखा दिया गया जो कि जांच का विषय है हर वर्ष लाखों पौधे लगाते हैं परंतु जब नजर नहीं आते तो कहीं ना कहीं गोलमाल/घपला जांच का विषय है जनता का पैसा आखिर किसकी जेब में जा रहा है पर्यावरण संरक्षण की बातें की जाती है हजारों लाखों पेड़ हर वर्ष कट जाते हैं परंतु पेड़ों के कटान के उपरांत 10% भी नहीं लग पाते । राष्ट्रीय राजमार्ग,लिंक मार्गो के अलावा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर पेड़ पौधों की संख्या नकारात्मक होती जा रही है जिसके लिए पर्यावरण मंत्रालय सरकार के अलावा सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा आम जनमानस को जागरूक होना होगा अन्यथा देश में धरती की बर्बादी रोकने वाला कोई नहीं होगा
ये जिन औषधीय पौधे की बात कर रहे हैं उनका कार्यकाल 18 महीने का है,तो पिछले साल किसानों को मिले पौधे खेतों में दिखने चाहिए थे जो कि दिखाई नहीं दे रहे है । जब तराई जलमग्न क्षेत्र है तो यहां पर उष्ण औषधीय पौधे देना भी भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है 20 एकड़ की फसल कोई मायने रखती है । एक एकड़ की फसल भी नही दिखी जो इस वर्ष अथवा पिछले वर्ष लगे हों। अगर हम सत्यता पर जाएं तो 20 एकड़ पिछले साल ओर 20 एकड़ इस वर्ष कुल 40 एकड़ जमीन पर इस तरह पौधे लगे हैं,लेकिन मौके पर आधा एकड़ भी देखने को नहीं मिला । सूत्रों के अनुसार जांच जारी है ।