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                                रमेश राम
चंपावत/ टनकपुर ,अस्पताल मे इलाज के दौरान गर्भवती महिला की मौत होने की एक और खबर! महिला के परिजनों द्वारा अस्पताल के चिकित्सकों और स्टाफ पर लापरवाही के आरोप! हालत ये है कि मरीज अपना इलाज कराने के लिए सरकारी अस्पतालों मे जाने से कतराते है!पर्वतीय क्षेत्र मे यह वास्तविकता हो गई है।स्वास्थ्य मंत्री हर बार बेहतर स्वास्थ्य सेवाए देने का दावा करते हैं लेकिन फिर कुछ दिनों बाद वही हाल। पहाड़ों पर डॉक्टर हैं नहीं, अस्पताल में मौत के आंकड़े बढ़ रहे हैं। लोग उपचार के लिए प्राइवेट अस्पतालों का रुख करने को विवश हो रहे है।प्राइवेट अस्पतालों मे स्थिति यह है कि गरीब आदमी तो अपना इलाज ही नहीं करा सकता। अस्पताल में परामर्श शुल्क से लेकर विभिन्न जांच कराने में लोगो के हाथ पांव फूल जाते हैं प्राइवेट अस्पतालों मे मरीज को चिकित्सक से परामर्श शुल्क कम से कम दो सौ से पांच सौ रुपए चुकाना पड़ता हैं यदि कोई जांच करानी हो तो वह अलग। फिर दवाइयों पर कितना खर्च होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। कई बार गरीब लोग धनाभाव के कारण अपना इलाज नहीं करा पाते है यदि इस तरह से अस्पतालो मे मनमानी और चिकित्सकों व कर्मचारियों की लापरवाही चलती रही तो गरीब जनता अपने इलाज के लिए कहा जाएगी?चुनाव आते ही उम्मीदवार मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह –तरह के हथकंडे अपनाने लगते है।वादे तो इतने किए जाते है कि जिनको पूरा करना संभव ही नहीं।
उत्तराखंड मे भी स्थिति कुछ अलग नही हैं। अभी तक किसी भी राजनैतिक दल ने जन समस्याओं को इमानदारी से हल करने का बीड़ा नही उठाया, जबकि राज्य आंदोलन ही पर्वतीय क्षेत्रों की उपेक्षा को लेकर उभरा था। बेरोजगारी के कारण आज पहाड़ का युवा कराह हैं। चंद सरकारी नौकरी दे देना ही रोजगार का स्थाई हल नहीं हैं प्रशिक्षित बेरोजगार युवा काफी समय से अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठे हैं। उनकी मांगों पर गंभीरता से सोचने के बजाय उनका उत्पीड़न कर राजनीतिक की जा रही हैं। आज पहाड़ का युवा पढ़– लिखकर महानगरों में तीन –तीन चार –चार हजार की नौकरी करने को विवश हैं।इसके अलावा यहां पेयजल व भ्रष्टाचार के प्रमुख मुद्दे हैं। उत्तराखंड की ठोस जल नीति न होने के कारण यहां के ग्रामीण पेयजल के लिए इधर –उधर भटकते हैं पहाड़ों में स्वास्थ्य–सुविधा के नाम पर लोगो से छलावा किया जा रहा हैं। अनेक क्षेत्रों में प्राथमिक चिकित्सा के केंद्र चिकित्सकों व कर्मचारियों-अधिकारियों से विहीन होने के कारण मरीजों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता हैं।
चुनावो के समय अक्सर राजनीतिक दल आरोप –प्रत्यारोप मे ही उलझे रहते है घिसे पीटें मुद्दो के सहारे ही लोगो को बरगलाने का कार्य किया जाता हैं। लोकसभा चुनाव पास आते देख सभी राजनीतिक दलों ने मतदाताओं के सामने थोथे नारो व वादों को पेश करना शुरू कर दिया हैं, लेकिन राजनीतिक दलों के पास ठोस मुद्दो का अभाव वैसे ही बना हुआ है, जैसा राज्य गठन से पूर्व था। पांच साल तक जनता के दुःख –दर्दों से दूर रहने वाले राजनेता आजकल फिर सक्रिय हो गए हैं।उत्तराखंड मे अनेक ज्वलंत समस्याएं हैं। विकास के नाम पर विनाश किए जाने का आरोप भी लगता रहता हैं।ऐसे ही तमाम मुद्दे हैं। लेकिन राजनेताओं ने जब–तब यहां की भोली– भाली जनता के साथ छल किया है। लोग कब चेतेंगे यह बड़ा सवाल है।

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