गणेश चतुर्थी सिर्फ़ एक त्यौहार नहीं है; यह नई शुरुआत की शक्ति का प्रतीक है। श्रीगणेश की कहानी हमें सिखाती है कि चुनौतियाँ और बाधाएँ जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा हैं, और उन्हें दूर करने का तरीका शांति और साहस है। यह त्यौहार हमें अतीत को भूलने, बदलाव को स्वीकार करने और उत्साह के साथ भविष्य की ओर देखने के लिए प्रोत्साहित करता है।भारत तीज त्योहारों का देश है। देश में हर माह आये दिन कोई न कोई तीज त्योहार होते रहते है। उन्हीं त्योंहारों में से एक है गणेश चतुर्थी।यह हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है खासकर महाराष्ट्र ,गोवा,आंध्र प्रदेश,दिल्ली एवं कर्नाटक में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीगणेश का जन्म हुआ था। मुम्बई सहित देश के कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का नौ दिनों तक पूजन किया जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुँचते है। नौ दिन बाद गानों और बाजों के साथ गणेश प्रतिमा का विसर्जन किसी तालाब, महासागर इत्यादि जल में कर दिया जाता है। भगवान गणेश को पेट बाहर की ओर निकलने यानी लंबा होने के कारण इन्हें लंबोदर भी कहा जाता है ।शिव पुराण के अनुसार भादो माह के अन्हरिया यानी कृष्ण पक्ष को चतुर्थी के दिन मंगलमूर्ति श्री गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेशपुराण के अनुसार श्रीगणेश का अवतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। भगवान श्रीगणेश के जन्म एवं अवतरण के कई कहानियां प्रसिद्ध है।उनमें से एक कहानी काफी प्रतलित कहानी है और वो है शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्र संहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वार पाल बना दिया औऱ कहा कि कोई भी पुरुष को जब तक स्नान न कर लूं तब तक अंदर आने नहीं देना ।इसी बीच शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक श्रीगणेश ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिव गणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया और शिवजी के निर्देश पर विष्णु जी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी/गजासुर) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने खुश होकर उस गज मुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में उसे अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन विघ्नहर्ता आज से तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष होगा। गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्ध्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है । गणेश चतुर्थी सिर्फ़ एक त्यौहार नहीं है; यह नई शुरुआत की शक्ति का प्रतीक है। गणेश की कहानी हमें सिखाती है कि चुनौतियाँ और बाधाएँ जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा हैं, और उन्हें दूर करने का तरीका शांति और साहस है। यह त्यौहार हमें अतीत को भूलने, बदलाव को स्वीकार करने और उत्साह के साथ भविष्य की ओर देखने के लिए प्रोत्साहित करता है।
गणेश जी की पूजा विधिगणेश चतुर्थी की पूजा विधि बहुत ही सरल और प्रभावी है। सबसे पहले भगवान गणेश की मूर्ति के सामने दीपक जलाएं और उन्हें पुष्प और फल अर्पित करें। इसके बाद गणेश मंत्रों का उच्चारण करें और गणेश चालीसा का पाठ करें। पूजा के अंत में श्रीगणेश की आरती करें और प्रसाद का वितरण करें। गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें मोडक, लड्डू और दूर्वा घास अर्पित करना चाहिए। इस साल पंचांगों के अनुसार, गणेश चतुर्थी या गणेशोत्सव 2024 में 7 सितंबर को मनाया जाएगा। भाद्रपद-कृष्ण-चतुर्थी से प्रारंभ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन व्रत करने पर विघ्नेश्वर गणेश प्रसन्न होकर समस्त विघ्न और संकट को दूर कर देते हैं।