
84लाख योनियों के विकट, दुरूह दुःख सहने बहुत मुश्किलो के बाद व प्रभुकृपा से देव दुर्लभ मानव का जन्म प्राप्त होता है मनुष्य के जन्म के बाद प्रथम अवस्था में खेल-कूद, पढ़ाई -लिखाई में गुजर जाती है यौवनावस्था में मन विषय- विकार से संतृप्त हो जाता है फिर नौकरी, व्यवसाय ,विवाह, बाल-बच्चों का लालन-पालन में व्यातीत हो जाता है फिर निगोड़ी वृद्धावस्था सिर पर आ खड़ी होती है शैने-शैने शरीर ढलने लगता है फिर जर्जर अवस्था में रोग ,शरीर को घेर लेते हैं दवाईयो व परहेज से शरीर कमजोर होने लगता है अन्ततः एक दिन शरीर मत्युशैया पर लेट इसका अन्त हो जाता है कब मनुष्य जन्म मिला और ग़फलत में व्यतीत हो गया इसे पता ही नहीं चलता आखिर सब योनियों में श्रेष्ठ मानव जीवन में जन्म लेने का उद्देश्य क्या था किस कारण से यह प्राप्त हुआ इस मर्म को संत जन बड़ी गहराई से मनुष्य को समझाते है यह मानव देह बड़ी दुर्लभ है समय रहते समय के संत- महापुरुषो के सानिध्य में आकर गुरु से नाम-दीक्षा ग्रहण कर सेवा,नाम के स्मरण का अभ्यास व ध्यान कर इस मनुष्य जीवन का लाभ उठा ले व भवसागर से पार हो जा बार बार के जन्म मरण से छूट जा यह ज्ञान हमें सत्संग के माध्यम से होता है गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में कहते हैं,, बिनु सत्संग विवेक न होई राम कृपा बिनु सुलभ न सोई,, सत्संग मन को निर्मल व पवित्र बनाता है भतृहरि कहते हैं सत्संग मूर्खता को हर लेता है यह मानव जन्म के कल्याण व लक्ष्य के बारे में ज्ञान कराता है मन ,काल व माया की विकटता को सहजता से समझाता है ईश्वर,जीव व प्रकृति के बारे में बताता है श्रेष्ठ व उत्तम जनों का संग व श्रेष्ठ पुस्तको का संग व मनन करना जरूरी है जैसे शरीर को ऊर्जा व पोषण के लिए भोजन की अवश्यकता होती है वैसे आत्मा की पवित्रता व खुराक के लिए व पाप निवारण व वाणी में सत्यता का संचार करने के लिए सत्संग के महती आवश्यकता है क्योंकि,,जैसा संग वैसा रंग।, महर्षि नारदजी के सत्संग- उपदेश के प्रभाव से रत्नाकर डाकू_ महर्षि वाल्मीकि बन गये। व आम्रपाली_गौतमबुद्ध के सत्संग- सानिध्य से भव सागर तर गई गृहस्थ -संन्यासी महाराज जनक नियमित सत्संग के प्रभाव से विदेह कहलाये सत्संग मनुष्य के लिए एक प्रकाशस्तभं की भांति जीवन को आलोकित करने वाला है ,, कबीरदास जी कहते हैं कि,,कबीरा संगति साधु की हरे और की व्याधि।, संगति बुरी असाधु की आठों पहर उपाधि ।।,,एक घड़ी आधी घड़ी आधी से पुन आध। तुलसी संगत साध की कटे कोट अपराध।। प्रस्तुति नरेशछाबड़ा रूद्रपुर










