
पौराणिक महाकाव्यो मे रामायण का महत्वपूर्ण स्थान है प्रभुश्रीराम जी का जीवन चरित्र भारतीय,संस्कृति का महत्वपूर्ण आधार है। प्रभु श्रीराम अपने मातापिता के आज्ञापालक, एकपत्नी वृत श्रेष्ठ राज शासक व,विभीषण, सुग्रीव, निषादराज गुह, मल्लाह केवट, भक्तिमाति शबरी जैसे समाज से तटस्थ प्राणियो की हार्दिक भावनाओ का ध्यान रखते हुए आदर के साथ रामजी उन्हे अपनाया और अनुपम पद प्रदान किया। प्राचीन समय से ही देश, विदेश मे रामलीलाओ का मंचन होता रहा है। वाल्मीकि रामायण व तुलसीकृत रामायण इसका प्रमुख आधार था। वर्तमान समय मे राधेश्यामकृत, यशवंतसिह, विश्वेश्वरदयाल कृत रामायणो के माध्यम से रामलीलाओ का मंचन होता है लेखक का मानना है कि एक कलाकार अपनी आत्मा को कला के माघ्यम से एक नयी आत्मा को जन्म देता है। वह अपने आंतरिक व्यवहार को छोड़कर एक नये चरित्र के व्यवहार को अपनाता है। एक जीवन मे दुसरे जीवन को छलकाना ही अभिनय है। कलाकार आंगिक, वाचिक, आहार्य, सात्विक अभिनय के माध्यम से अपनी अभिनय कला को प्रस्तुत करता है। रामायण मे सीताजी, भरतजी, लक्ष्मणजी, हनुमानजी, गिद्धराज जटायु जैसे पात्रो का जीवन सेवाभाव की अमिट छाप है। रामजी ने दर्शाया कि एक दुष्ट व्यक्ति, शत्रु केवल जीवित रहने तक ही होता है मरने के पश्चात उससे बैरभाव नही रखना चाहिए दो अक्षर का प्यारा सहज व सरल नाम है राम इस रामनाम के सहारे पत्थर भी पानी मे तैर सकते है रामलीलाओ के माध्यम से हम जीवन को जीने की कला को सीखते है यदि हम रामायण का कुछ अंश भी अपने जीवन में उतारे तो हम अपने जीवन को खुशहाल व समृद्भशाली बना सकते हैं।


नरेश छाबडा






