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ब्रेन ट्यूमर एक गंभीर और तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य समस्या है, जिससे हर साल हज़ारों लोग प्रभावित होते हैं। भारत में हर साल करीब 40,000 से 50,000 नए मामले सामने आते हैं। ब्रेन ट्यूमर दिमाग के सेल्स की असामान्य या कंट्रोल से बाहर बढ़त की वजह से होता है, जो कभी कैंसर के साथ (मेलिग्नेंट) और कभी बिना कैंसर (बिनाइन) होता है। यह ट्यूमर मस्तिष्क के सामान्य कार्यों को कठिन करता है, जिससे सिरदर्द, याद्दाश्त की समस्या, बोलने व चलने में कठिनाई जैसी परेशानियां हो सकती हैं।

इस बीमारी के कारणों की पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन जेनेटिक फैक्टर और पर्यावरणीय प्रभाव, जैसे परिवार में ट्यूमर का इतिहास, रेडिएशन का अधिक संपर्क, कुछ केमिकल्स या इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड्स के संपर्क और कमज़ोर इम्यून सिस्टम को इसके संभावित कारण माना जाता है।

यथार्थ हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा में न्यूरोसर्जरी के डायरेक्टर और ग्रुप डायरेक्टर न्यूरोइंटरवेंशन डॉ. सुमित गोयल के अनुसार, “ब्रेन ट्यूमर को जितना जल्दी पहचाना जाए, उतना ही बेहतर इलाज संभव है। आज की तकनीकों से हम ट्यूमर को सुरक्षित रूप से हटाने में सक्षम हैं, लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि मरीज लक्षणों को नजरअंदाज न करें और समय पर विशेषज्ञ से सलाह लें। हर दिन की देरी बीमारी को गंभीर बना सकती है।”

ब्रेन ट्यूमर के लक्षण ट्यूमर के आकार, स्थान और बढ़ने की गति पर निर्भर करते हैं। सामान्य लक्षणों में सुबह का तेज सिरदर्द, धुंधली नज़र, सीज़र, याद्दाश्त में कमी, स्वभाव में बदलाव और संतुलन में दिक्कत शामिल हैं। ये लक्षण अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से मिलते-जुलते हो सकते हैं, जिससे सही समय पर पहचान मुश्किल हो जाती है। इसलिए एमआरआई और सीटी स्कैन जैसे इमेजिंग तरीकों की मदद से ब्रेन ट्यूमर की समय पर पहचान और इलाज की बेहतर योजना संभव होती है। जल्दी पहचान से इलाज की सफलता और मरीज की जीने की संभावना में बढ़ोतरी संभव है। ऐसे लक्षण जो लगातार बने रहें, उन्हें नज़रअंदाज़ न करें और तुरंत न्यूरोसर्जन से संपर्क करें।

ब्रेन ट्यूमर दो प्रकार के होते हैं – प्राइमरी, जो मस्तिष्क में ही शुरू होते हैं, और सेकेंडरी, जो शरीर के किसी अन्य हिस्से से मस्तिष्क में फैलते हैं। प्राइमरी ट्यूमर में ग्लायोब्लास्टोमा सबसे आक्रामक होते हैं, जिनका इलाज बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। मेनिन्जियोमा सामान्यतः बिनाइन होते हैं लेकिन बड़े होकर मस्तिष्क पर दबाव डाल सकते हैं। वहीं, पिट्यूटरी एडेनोमा हार्मोनल असंतुलन पैदा कर सकते हैं। हर प्रकार के ट्यूमर के लिए अलग उपचार रणनीति आवश्यक है, जो विशेषज्ञ की सलाह से तय होती है।

इलाज ट्यूमर के प्रकार, आकार और स्थान पर निर्भर करता है। आम तौर पर सर्जरी सबसे पहला विकल्प होता है, जिसमें ट्यूमर को अधिकतम हटाने का प्रयास किया जाता है। आजकल मिनिमली इनवेसिव सर्जरी और नेविगेशन-असिस्टेड सर्जरी से सर्जरी अधिक सटीक और सुरक्षित हो गई है। जब सर्जरी संभव न हो, तो रेडिएशन थेरेपी से ट्यूमर को टारगेट किया जाता है। केमोथेरेपी और टारगेटेड ड्रग थेरेपी से आक्रामक या दोबारा उभरने वाले ट्यूमर का इलाज होता है। हाल के वर्षों में इम्यूनोथेरेपी से भी इलाज की नई संभावनाएं बनी हैं।

समय पर पहचान और उपचार से मरीज की जीवन गुणवत्ता और जीने की संभावना, दोनों में सुधार संभव है। जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए नियमित हेल्थ चेकअप और आधुनिक इमेजिंग सुविधाएं फायदेमंद साबित हो सकती हैं। यदि कोई भी लक्षण लंबे समय तक बने रहें, तो विशेषज्ञ से संपर्क करना बेहद ज़रूरी है। मेडिकल रिसर्च और तकनीकी प्रगति से इलाज के विकल्प अब पर्सनलाइज़ हो रहे हैं, जिससे बेहतर परिणाम संभव हो रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और जन-जागरूकता से मरीजों को जल्द पहचान और प्रभावी इलाज मिल सकता है।

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