Spread the love


भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में भगवान श्रीकृष्ण 16 कला संपूर्ण जगत-नियन्ता हैं इनका जन्म दिवस श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में संपूर्ण भारतवर्ष व विश्व मे भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को बड़ी श्रद्धा व विश्वास व उल्लास के साथ मनाया जाता है यह भारत वर्ष व पूरे विश्व में हिन्दूओं के लिए भक्ति एकता व आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है उनकी पूजा उनके चंचल और शरारती स्वाभाव के साथ ही बुद्धि व करूणा के लिए लिए भी की जाती है नगर, धरो व मंदिरो में रोशनियां कर व प्रभु श्रीराधा-कृष्ण की झांकियां सजाकर व दर्शन कर ,भजन- कीर्तन के माध्यम से प्रभु के शुभ आगमन पर मंगलगीत गाकर भक्तो द्वारा खुशियों का इजहार किया जाता है माखन-मिश्री का भोग-प्रसाद वितरित किया जाता है जन्म के साथ ही प्रभु श्री कृष्ण को जीवन में बहुत सी विसंगतियों का सामना करना पड़ा कंस के कहने पर बहुत से राक्षसों द्वारा ने उन्हें मारने की कई बार कोशिश की गयी परन्तु भक्त -दया- वत्सल भगवान श्रीकृष्ण ने उनका वधकर उद्धार किया राक्षसी पूतना को मातृ-तुल्य समझ उसका उद्धार कर अपना लोक प्रदान किया। श्रीकृष्ण जीवन के फूल व कांटों को एक साथ प्रसन्नता के साथ स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहते हैं उनका जन्म अंधेरे पक्ष में हुआ था उनकी लीला-दर्शन मन से नकारात्मक का अंधेरा दूर करते हैं व दुसरो के जीवन में उजियारा भरने का कार्य करती हैं जीवन के सभी रंगों को सहज स्वीकार करते हैं गोकुल छूटा , गोपी- ग्वाल छुटे,नंद-यशोदा छूटे, बांसुरी छूटी सभी कुछ प्रसन्नता से स्वीकार किया उनका जीवन,जीवन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है व परिवर्तन को सहजता से स्वीकार करता है कभी अपनी बाल -सुलभ लीलाओं के माध्यम से अपनें भक्तों को सुख प्रदान करते हैं कभी मामा कंस का अंहकार तोड़ उसका उद्धार करते हे माता-पिता को बंदी गृह से छुड़ाते हे उग्रसेन को राज्य प्रदान करते है कभी महाभारत के नायक बन कुरूक्षेत्र में गीता का उपदेश देकर अर्जुन का मोह दूर करते हैं उन्हें जीवन के संघर्षों का सामना करने की सामर्थ्य प्रदान कर व जीवन की वास्तविकता का भेद समझाते हैं कभी श्रीद्वरिकाधीश बन मित्र सुदामा के चरणों का अपने आंसुओ से प्रक्षालन कर तीनो लोकों का राज्य देकर सुख प्रदान करते हैं। उनकी जीवन लीलाएं भी यही संदेश देती है सच्ची भक्ति, प्रेम व समर्पण से से प्रभु को पाया जा सकता है कृष्ण के सच्चे भक्त के भीतर अंहकार व विकारो की जंजीरे टूटने लगती है सर्वत्र प्रभु दर्शन होने लगते हैं मोक्ष व आध्यात्मिक प्रगति के द्वार खुलने लगते हैं यही श्यामा-श्याम की वास्तविक भक्ति व कृपा है।प्रस्तुति–नरेश छाबड़ाआवास -विकास रूद्रपुर8630769754

You cannot copy content of this page