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सितारगंज आज प्रेस वार्ता में कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता डॉ० गणेश उपाध्याय ने बताया कि उत्तराखण्ड में लगातार चीनी उत्पादन में कमी देखने को मिली है। वही पक्की खेती के नाम से मशहूर गन्ना फसल से किसान दूरी बनाते नजर आ रहें है। जिले में गन्ने का रकबा भी लगातार घट रहा है। जिसका मुख्य कारण खेत की जुताई से लेकर चीनी मिल तक गन्ना पहुंचाने में मंहगाई ने किसान की कमर तोड़ दी है। डीजल की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी, मंहगाई से गन्ना की जुताई में 12 हजार रू०, बीज 16 हजार रु०, बीज शोधन पर 7 हजार रू०, गन्ना बुवाई व लेबर 8 हजार रु०, निराई गुड़ाई 9 हजार रु, सिंचाई पर 6 हजार रु०, दवाई खाद पर 15हजार रु, पालतू जानवर व जंगली जानवर से देखभाल एवं साफ सफाई पर 7 हजार रु, कटाई पर 16 हजार रु, गन्ना ढ़ुलाई पर 10 हजार रु समेत प्रति एकड़ में 300 कुंतल गन्ने की फसल उत्पादन पर लगभग ₹ 83 हजार रू का खर्च आ रहा है। जबकि नवीन गन्ना मूल्य के अनुसार लगभग 1 लाख 20रू० प्रति एकड़ किसानों को सरकार द्वारा दिया जा रहा हैं । जिससे किसानों को मात्र 37 हजार रु० प्रति एकड़ की ही बचत हो पा रही है। जबकि किसान साल भर खेत में ही रहता हैं, अपनी मजदूरी नहीं जोड़ा है । परंतु यदि किसान अपनी जमीन को किराए पर लगा दे तो गन्ने की फसल लगभग ड़ेढ़ साल में तैयार हो पाती है। जिस कारण किसान को 1 बार की फसल में लगभग ₹45 हजार रू का नुकसान होता है। जबकि कुछ साल पहले इतना ही गन्ना बुआई पर 25 प्रतिशत कम लागत आती थी। बुवाई गन्ना व फालतू जानवरों से बचाव के लिए में भारी खर्च और बकाया भुगतान में देरी से किसानों का गन्ना खेती से मोहभंग होता जा रहा है। अब समय के हिसाब से किसान पॉपुलर की खेती करना चाह रहा है , पॉपुलर 5 साल में तैयार हो जाता है । पॉपुलर की खेती में गेहूं भी बो सकते हैं प्रतिवर्ष 1 लाख से सवा लाख रुपया बचत हो रही है ।किसानों ने गन्ने की खेती से मुंह मोड़ लिया है। नतीजा यह रहा कि जहां 25 वर्ष पूर्व तराई क्षेत्रों की तहसीलों के बड़े रकबे में भारी मात्रा में गन्ने की खेती होती थी, परन्तु आज बहुत ही कम रकबे में ही गन्ने की बुवाई की जा रही है। वर्तमान में चीनी मिलों का गणित साफ है। पहले गन्ना पहुंचाओ, बाद में दाम पाओ। गन्ना मूल्य में मात्र खानापूर्ति करने पर किसान नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। उर्वरकों, कीटनाशकों से लेकर डीजल एवं पालतू जानवरों से बचाव के लिए मजदूर को अतिरिक्त पैसा देना पड़ा है आदि के दाम जिस हिसाब से बढ़े, उस हिसाब से सरकार गन्ना मूल्य नहीं बढ़ा रही है। केंद्र सरकार द्वारा मात्र 355 रु० प्रति कुंतल की बढ़त की है। जबकि मंहगाई के अनुसार एम एस पी लागू करते हुए 400रु० प्रति कुंतल का गन्ना मूल्य केंद्र सरकार द्वारा तथा राज्य सरकार द्वारा न्यूनतम 100 रु० और बोनस देते हुए गन्ना मूल्य 500रु० कुंतल होना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि गन्ना मूल्य बकाया पर ब्याज के मामले पर भाजपा सरकार गूंगी हो जाती है, जबकि मंहगाई से लेकर नेताओं के वेतन भत्ते बढ़ाने पर भाजपा सरकार रातों रात प्रस्ताव पास कर लेती है। किसान इस बात को समझते हैं कि उन्हें बरगलाया नहीं जा सकता है। इसके अलावा एमएसपी बड़ा मुद्दा है। भले ही कृषि कानून वापस हो गया हो, लेकिन एमएसपी पर फसल का मूल्य मिलना बेहद जरूरी है। आज यह मांग पूरे देश भर से उठ रही है। जब तक गन्ना और एमएसपी जैसे मामलों का हल नहीं निकलेगा, किसानों के लिए खेती का काम दुश्वार होता चला जायेगा।

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