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कहर बरपा रहा है मौसम फिर आजकल,फिर फटते बादल,
कहीं बाढ़,तो कहीं भू-स्खलन,
कहीं भूख से बेहाल है बचपन
कहीं उजड़ कर गिरता प्यारा सा आशियां,दुःख भरे मंजर को तकता आसमां,बाढ़ में बहते मवेशी,चीत्कार करती मासूम बच्ची।अपनों को मृत देखकर फैल रही चिर-खामोशी
प्रकृति दिखा रही अपनी ताकत अपना रौद्र रूप
मनुष्य समझे अपना सहज स्वरूप,मानो प्रकृति सह नही सकती उसका अतरिक्त भार और ज्यादतियां । बढ़ रहा है पर्वतो पर पर्यटन और गुस्ताखियां।।संभल ऐ मानव छोड़ दे तू प्रकृति से छेड़छाड़ ।जब सब हो जायेगा बर्बाद फिर किसका करेगा विकास ।।
प्रस्तुति,,, नरेश छाबड़ा
आवास-विकास रूद्रपुर
8630769754

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