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सेवा करना एक बड़ी जिम्मेदारी का काम है सेवा के माध्यम से हम अपना तथा समाज का बेहतर व न्यायपूर्ण निर्माण कर सकते हैं सेवा हमारा समग्र विकास होता हैं सेवा,समाज की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है सेवा किसी भी क्षेत्र में हो चाहे शिक्षा, अध्यात्म, स्वास्थ्य,कला , विज्ञान, पर्यावरण, अन्न , निर्माण कार्य,जीव- जन्तु इसमें विशिष्ट व साधारण सेवा कार्य कर मनुष्य इसमें अपना तन, मन ,धन,से योगदान देकर स्वयं का व समाज का कल्याण कर सकता है यदि सेवा निःस्वार्थ व परमार्थ व परोपकार की भावना से की जाये तो और भी सोने पर सुहागा है निःस्वार्थ व निष्काम भाव से की गयी निरन्तर सेवा हमारे अहमं को मिटाती है । हमारे अंतर्मन को मंझाने का कार्य कर हृदय को सरल व स्वच्छ बनाती है तथा ईश्वर में विश्वास जगाती हैं गुरू आज्ञा से गुरू सेवा कठिन हो सकती है परन्तु उनकी कृपा से सहज सरल हो जाती है जिससे सदगुरु की प्रसन्नता प्राप्त होती हैं भव बंधन काटने के लिए भी सेवा भक्ति की एक सीढ़ी है शबरी,संत रविदासजी , कबीर,नरसी मेहता, मीराबाई, भगिनी निवेदिता,मदर टेरेसा संतों महापुरुषों ने अपने दैनिक क्रिया -कलापो को नर- सेवा में बदल दिया सेवा व सत्संग को अपने जीवन मे अपनाया ,तपाया व निखारा व प्रेमाभक्ति को प्राप्त कर परमपद को प्राप्त किया। किसी भी संस्था व उधोग में वर्करों के कार्य करने की क्षमता,ऊर्जा व स्वास्थ्य टाइम-टेबल उधोग की कार्यक्षमता व उत्पादन पर बड़ा प्रभाव डालता है हमें नित नये प्रयोग करने चाहिए जिससे कार्य में निरन्तरता बनी रहे हमें केवल अपने बारे में ही नही सोचना चाहिए बल्कि अपने जीवन में सेवा को अनिवार्य हिस्सा बनाना चाहिए जिससे अपना व दुसरो का जीवन धन्य कर सके।नरेश छाबड़ाआ,वि, रूद्रपुर8630769754

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