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मुरादाबाद आचार्य एनजी रंगा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, आंध्र प्रदेश के रीजनल एग्रीकल्चर रिसर्च स्टेशन में प्राकृतिक खेती, मिट्टी और फसल की स्थिरता के लिए संभावना और रणनीतियों पर हुआ दस दिनी ट्रेनिंग प्रोग्राम इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च-आईसीएआर की ओर से आचार्य एनजी रंगा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, आंध्र प्रदेश के रीजनल एग्रीकल्चर रिसर्च स्टेशन में प्राकृतिक खेती, मिट्टी और फसल की स्थिरता के लिए संभावना और रणनीतियों पर दस दिनी ट्रेनिंग प्रोग्राम हुआ, जिसमें तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज़ की दो फैकल्टीज़ ने नेचुरल फार्मिंग के तहत ड्रोन की फार्मिंग में उपयोगिता, बीज उपचार, मिट्टी उपचार, फसल प्रबंधन, कीट नियंत्रण, खरपतवार प्रबंधन, मिट्टी में कार्बन एवम् सूक्ष्म जीवाणुओं की वृद्धि और प्राकृतिक उत्पादकों की मार्केटिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया। रंगा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी की वीसी प्रो. आर सारदा जयलक्ष्मी देवी के संग-संग पदमश्री श्री चिथाला वेंकटा रेड्डी की उल्लेखनीय मौजूदगी रही। इस मौके पर टीएमयू की फैकल्टीज़ डॉ. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी और डॉ. सच्चिदानंद सिंह के अलावा देश के विभिन्न राज्यों के एग्रीकल्चर कॉलेजों की 33 फैकल्टीज़ ने हिस्सा लिया। टीएमयू एग्रीकल्चर कॉलेज के डीन प्रो. प्रवीन कुमार जैन ने कहा, यह प्रशिक्षण न केवल टीएमयू एग्रीकल्चर फैकल्टीज़, बल्कि टीएमयू स्टुडेंट्स के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा।

दस दिनी इस प्रशिक्षण में रंगा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी की वीसी ने प्रशिक्षण शुभारम्भ के मौके पर प्रो. आर सारदा जयलक्ष्मी देवी ने कहा, प्राकृतिक खेती एक वरदान है, जिससे मिट्टी और फसलों को रासायनिक उर्वरकों के प्रभाव से बचाया जा सकता है, जबकि रासायनिक खेती अभिशाप से कम नहीं है। ट्रेनिंग प्रोग्राम में डॉ. एन. रविशंकर, डॉ. एके यादव, डॉ. एम. हेमंत कुमार, डॉ. एनके सत्यमूर्ति, डॉ. आरके विश्वास, डॉ. टी. गिरधर कृष्णा, डॉ. टी. मुरली कृष्णा, डॉ. ए. सुब्बारमी रेड्डी, डॉ. के. गौरव रेड्डी, डॉ. गजानन पीएस सरीखे जाने-माने कृषि विशेषज्ञों ने अपने-अपने व्याख्यान दिए। ट्रेनिंग प्रोग्राम के कोर्स डायरेक्टर डॉ. केवी नागा माधुरी और डॉ. जी. कृष्णा रेड्डी का कहना है, ऐसे ट्रेनिंग प्रोग्राम से प्राकृतिक खेती को और बढावा मिलेगा। उल्लेखनीय है, डॉ. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी और डॉ. सच्चिदानंद सिंह के 16-16 रिसर्च पेपर प्रकाशित हो चुके हैं। ये फैकल्टीज़ करीब एक दर्जन से अधिक इंटरनेशनल और नेशनल सेमिनार में शिरकत कर चुके हैं।

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