Spread the love


किसी व्यक्ति में यदि कोई गुण होने पर वह व्यक्ति कहता है कि यह कार्य मैंने किया है यदि मैं नहीं होता तो यह कार्य संभव ही नहीं हो पाता यह एक अंहकार का लक्षण है,मैं बहुत सुंदर हूं,मैं बहुत योग्य ईमानदार हूं सब मेरा आदर करतें हैं बेवजह ही वह व्यक्ति यही सोचता रहता है कि इसीलिए फलाना व्यक्ति लोग मुझसे ईष्र्या करता हैं यह उसकी मानसिक धारणा बन जाती है। अपनी प्रतिभा या उपलब्धियों के प्रति अत्यधिक सम्मान,मद, दंभ आत्ममहत्व का होना केवल अपने हितों का ध्यान रखना अंहकार का ही पोषण है क्योंकि संसार में किसी के न रहने पर उस व्यक्ति -की भरपाई ईश्वर स्वयं करतें हैं यह संसार पहले की तरह ही गति मान रहता है अंहकार दुसरो से खुद को श्रेष्ठ मानने के कारण उत्पन्न हुआ व्यवहार है जब यह बलवान होता है तो मनुष्य की चेतना पर अंधकार का परदा पड़ जाता है वह मनुष्य की चेतना को चारों और से धेर लेता है और उसे क्या सही है क्या ग़लत इसका निर्णय करने में स्वयं को अक्षम पाता है अंहकार शान्ति का शत्रु है अंहकार रूपी अग्नि,व्यक्ति के रूई रूपी तन को जलाकर भस्म कर देती है जैसे नींबू की बूंद हजारों लीटर दूध को बर्बाद कर देती है यह अंहकार अपने अच्छे-अच्छे संबंधो को भी बर्बाद कर देता है। यह जीवन की उन्नति में बड़ी बाधा है यह परिवार व समाज को अधोगति की और ले जाता है यह ऐसा विकार है जो मनुष्य की बुद्धि को हर लेता है अपनी ग़लती होने पर भी इसे स्वीकार नहीं करता अपने को हर तरीके से सही मानता है वह चापलूसी व झूठी खुशामद करने वालों की बात मानकर अपने अंहकार का दंभ भरता है अनर्गल प्रलाप करता है। वहीं पवित्र व श्रेष्ठ संस्कार हमें समाज में प्रतिष्ठा से विभूषित करते हैं । संस्कार हमारी शारीरिक, मानसिक,और आध्यात्मिक उन्नति का आधार है ये सदा हमें पुण्य कर्मों की ओर प्रवृत्त करते हैं इसे अपने विचार, विश्वास, दृष्टिकोण और मुल्यो में शामिल करना चाहिए हमें अपनी उपलब्धियों पर धमडं न कर शीलवान व परोपकारी बनना चाहिए। लंकापति राजा रावण, महाराज कंस,राजा हिरणाकश्यप, सिकंदर महान,राजादक्ष प्रजापति जैसे महादंभियो का दर्प ईश्वर पल भर में चकनाचूर कर देते हैं तो आम आदमी की क्या बिसात ही क्या है।थोड़े से पद , ताकत व प्रशंसा मिलने पर व्यक्ति में अभिमान हो पैदा हो जाता है उसी से अंहकार रूपी दुर्गुण का जन्म होता है।जो हमारी दुर्गति का कारण बनता है इस दुर्गुण से हमें सावधान रहने की अवश्यकता है नहीं तो यह मनुष्य के जीवन के लिए बरबादी की राह अख्तिेयार कर सकता है। हमें सदा अपने अच्छे कर्मों द्वारा ही अपने को प्रस्तुत करना चाहिए फल की कामना ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए कबीर दास जी भी अपनी वाणी में कहते हैं,,बड़े बढ़ाई न करें,बड़े न बोले बोल ।हीरा मुख से न कहें, लाख टका मम मोल ।।
प्रस्तुती–नरेश छाबड़ा आवास-विकास रुद्रपुर।

You cannot copy content of this page