मसूरी के मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज, जो अब 75 साल के हैं, और उनके दोस्तों ने 1975 में मसूरी से दिल्ली तक की करीब 320 किलोमीटर की दूरी रोलर स्केट्स पर 5 दिनों में पूरी की थी। गोपाल भारद्वाज द्वारा अपने 75 साल के मित्र सिंघाड़ा सिंह के साथ मसूरी के गढ़वाल टैरेस पहुचे और उनके द्वारा मसूरी से दिल्ली की यात्रा स्केट्स के माध्यम से की थी उसको याद किया यहा पर दोनो दोस्तो ने एक दूसरे का हाथा पकड़ कर स्केट्स की और अपने पुराने दिनों को याद किया । इस मौके पर उन्होंने मसूरी से दिल्ली उनके साथ गए अन्य तीन दोस्तो को भी याद किया जो अब इस दुनिया में नही है। गोपाल भारद्वाज और सिंघाड़ा सिंह ने उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तराखंड सरकार पर उनकी उपेक्षा करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा 1975 में सीमित संसाधनों के बावजूद मसूरी से दिल्ली तक की यात्रा स्टेटस के माध्यम से की थी ओर पूरे विश्व में उस समय उत्तर प्रदेश का नाम रौशन किया था परन्तु 5व साल पूरे होने के बावजूद जिंदा बचे हुए दोनों गोपाल भारद्वाज और सिंघाड़ा सिंह की सुध लेने वाला कोई नही है। उन्होंने मसूरी के स्थानीय प्रशासन और मसूरी नगर पालिका प्रशासन से मसूरी में स्केटिंग रिंक हाल बनाये जाने की मांग की वही उन्होने मसूरी के टाउन हॉल में स्केटिंग करने के लिये अनुमति दिए जाने की मांग की।

गोपाल भारद्वाज और सिंघाड़ा सिंह ने बताया कि 1975 में जब उन्होंने यह यात्रा की थी, तब वे जीवन में पहली बार दिल्ली में दाखिल हुए थे। दिल्ली में दाखिल होने पर उनका और उनके साथियों का दिल्ली की जनता, पुलिस और रोलर स्केटिंग फेडरेशन की ओर से भव्य स्वागत किया गया था। कोका कोला कंपनी की ओर से उन्हें 50-50 रुपये का इनाम भी दिया गया था। दूरदर्शन पर उनका साक्षात्कार भी हुआ था, जो उनके लिए काफी बड़ी बात थी। उन्होंने बताया कि वर्तमान में आधुनिक स्केट्स उपलब्ध हैं, लेकिन 70 के दशक के अंत में ऐसे उपकरण उपलब्ध नहीं थे। तब खिलाड़ी लोहे के पहिये वाले स्केट्स का इस्तेमाल करते थे। उनके साथ मसूरी के संगारा सिंह, आनंद मिश्रा, गुरदर्शन सिंह जैसवाल और गुरचरण सिंह होरा भी थे। वे फिगर स्केटिंग में तीन बार के राष्ट्रीय चौंपियन अशोक पाल सिंह के मार्गदर्शन में 14 फरवरी 1975 को मसूरी से रोलर स्केटिंग की यात्रा पर निकले थे। यह यात्रा देहरादून, रुड़की, मुजफ्फरनगर और मेरठ होते हुए दिल्ली पहुंचकर 18 फरवरी 1975 को पूरी हुई। गोपाल भारद्वाज याद करते हैं कि उस समय ऐसे आयोजन सिर्फ़ यूरोपीय देशों में ही होते थे। इतनी लंबी दूरी की यह एशिया की पहली रोड स्केटिंग यात्रा थी।
भारद्वाज याद करते हैं कि दिल्ली पहुंचने पर दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल डॉ. कृष्ण चंद्र पांचों स्केटर्स का स्वागत करने के लिए मौजूद थे। स्केट्स में लोहे के पहिये लगे थे, इसलिए उन्हें बार-बार बदलना पड़ता था। कई बार वे और उनके साथी तीन पहियों पर कई किलोमीटर तक यात्रा करते रहे। जब वे देहरादून से गुजर रहे थे, तो राजपुर रोड पर विजय लक्ष्मी पंडित खड़ी थीं और उनका हौसला बढ़ाती थीं। उनका पहला पड़ाव देहरादून, दूसरा रुड़की, तीसरा मुजफ्फरनगर और चौथा मेरठ में था। पांचवें दिन दिल्ली पहुंचने पर उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया।
गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि इस अभियान से उत्साहित होकर टीम के सदस्यों ने मसूरी से अमृतसर तक की 490 किलोमीटर की दूरी रोलर स्केट्स पर तय करने का फैसला किया। मसूरी से दस स्केटर्स 9 दिसंबर, 1975 को सड़क मार्ग से अमृतसर के लिए रवाना हुए और 17 दिसंबर, 1975 को अमृतसर पहुँचे। टीम में आनंद मिश्रा, जसकिरन सिंह, सूरत सिंह रावत, अजय मार्क, संगारा सिंह, गुरदर्शन सिंह, गुरचरण सिंह होरा, लखबीर सिंह, जसविंदर सिंह और भारद्वाज शामिल थे।
आनंद मिश्रा, गुरदर्शन सिंह जायसवाल और गुरुचरण सिंह होरा अब इस दुनिया में नहीं हैं। केवल सिंघाड़ा सिंह और वे ही बचे हैं। लेकिन, आज तक इनमें से किसी भी स्केटर को सरकार की ओर से कोई सम्मान या सम्मान नहीं मिला है। इसका नतीजा यह हुआ है कि मसूरी में रोलर स्केटिंग और रोलर हॉकी खत्म होती जा रही है। उन्होंने बताया कि रोलर स्केटिंग और रोलर हॉकी में मसूरी का स्वर्णिम इतिहास रहा है। 1880 से 1970 तक मसूरी के स्केटिंग रिंक हॉल को एशिया का सबसे पुराना और बड़ा स्केटिंग रिंक होने का गौरव प्राप्त था। 20वीं सदी में 1981 से 1990 के बीच रोलर स्केटिंग-रोलर हॉकी और मसूरी एक दूसरे के पूरक रहे। इस दौरान अक्टूबर का महीना मसूरी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हुआ करता था। यहां हर साल आयोजित होने वाली ऑल इंडिया रोलर स्केटिंग प्रतियोगिता में देशभर से नामी स्केटर्स जुटते थे। इस दौरान लगभग सभी खिलाड़ी अपनी कला और स्पीड स्केटिंग का प्रदर्शन करने के साथ ही रोलर हॉकी भी खेलते थे। उन्होने कहा कि वर्तमान बच्चे खेलों से दूर हो रहे, ये आज के समय में काफी रिलेवेंट है। आजकल बच्चे ज्यादा तर टेक्नोलॉजी और डिजिटल डिवाइसेस में ही अपना समय गुजार रहे हैं, जो उन्हें आउटडोर एक्टिविटीज और फिजिकल गेम्स से दूर ले जा रहा है। ये एक चिंता का विषय है, क्योंकि खेलना सिर्फ मजा नहीं, बल्कि बच्चों की सेहत और विकास के लिए भी जरूरी है।






