सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी श्रीनगर गढ़वाल खैट पर्वत का वह गुप्त रहस्य जिसकी वजह से इस पूरे इलाके को कहा जाता है ‘परियों का देश’ देश के कई प्रमुख धार्मिक स्थल होने की वजह से उत्तराखंड देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है धर्म,संस्कृति और शास्त्र की नगरी हरिद्वार उत्तराखंड के साथ ही देश का प्रमुख तीर्थ स्थल है लेकिन उत्तराखंड इसके अलावा भी अपनी कई प्राचीन चीजों के लिए भी मशहूर है इन्हीं में से एक कुल देव की पूजा भी है। उत्तराखंड को वैसे भी देवी देवताओं का वास स्थल भी माना जाता है,इसीलिए यहां के लोग आज भी देवी देवताओं में काफ़ी प्रथम पूजनीय मानते हैं। उत्तराखंड में आज भी कई जगहें ऐसी भी हैं जो रहस्यों से भरी हुई हैं इन्हीं में से एक जगह खैट पर्वत भी है। आज आपको ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी खैट पर्वत के विषय में जानकारी दे रहे हैं। देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में स्थित इसी रहस्यमयी खैट पर्वत के बारे में बात करने जा रहे हैं। मान्यता है कि खैट पर्वत पर आंछरी अर्थात परियां वास करती हैं उत्तराखंड के गढ़वाल में परियों को आंछरी कहा जाता है इसीलिए इस पर्वत को परियों का देश भी कहा जाता है। खैट पर्वत समुद्र तल से करीब 10000 फीट की ऊंचाई पर है। यह पर्वत रहस्यमयी घनसाली इलाके में स्थित थात गांव से क़रीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है खैट पर्वत किसी जन्नत से कम नहीं है कहते हैं यहां आज भी लोगों को अचानक से परियों के दर्शन हो जाते हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि खैट पर्वत की परियां ही गांव की रक्षा करती हैं,खैट उत्तराखंड का रहस्यमयी पर्वत खैट इसलिए भी रहस्यमयी माना जाता है क्योंकि यहां पर सालभर फल और फूल खिले रहते हैं,इन फल और फूलों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने पर ये तुरंत ख़राब हो जाते हैं,लेकिन सबसे हैरत की बात तो ये है कि इस वीरान पर्वत पर स्वत ही अखरोट और लहसुन की खेती पनप जाती है,अखरोट के बागान लुकी पीड़ी पर्वत पर बने मां बराडी के मंदिर के गर्भ जोन गुफा के करीब ही हैं। रहस्यमयी खैटखाल मंदिर खैट पर्वत इलाक़े में स्थित थात गांव से 5 किमी की दूरी पर खैटखाल मंदिर है,जिसे रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र भी कहा जाता है स्थानीय लोग इसे परियों या अछरियों के मंदिर के रूप में भी पूजते है,यहां प्रतिवर्ष जून माह में मेला लगता है। कहा जाता है कि परियों को चटकीला रंग शोर और तेज संगीत पसंद नहीं है,इसलिए यहां इन बातों की मनाही है,इस इलाके में जीतू नाम के एक व्यक्ति की कहानी भी काफी चर्चित है कहते हैं जीतू की बांसुरी की तान पर आकर्षित होकर परियां उसके सामने आ गई और उसे अपने साथ ले गईं। अमेरिका की मैसासयुसेट्स विश्वविद्यालय ने इस पर्वत पर एक शोध किया था। इस शोध में उन्होंने पाया कि यहां कुछ ऐसी शक्ति है जो अपनी ओर आकर्षित करती है। मान्यता है कि इस पर्वत पर 9 परियां रहती हैं,जिन्हें स्थानीय भाषा में अछरियां कहते हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात या है कि यहां अनाज कूटने वाली ओखलियां जो समतल पर बनी होती है,खैट पर्वत पर ये ओखलियां दीवारों पर बनी हैं,गांव की रक्षा करती है परियां इस पर्वत के सबसे नजदीक है थात गांव,यहां के लोगों का मानना है कि उनके गांव की रक्षा हजारों सालों से परियां कर रही हैं,कुछ लोग तो यह भी दावा करते हैं कि उन्हें खैट पर्वत पर कई बार परियों के दर्शन भी हुए हैं,हालांकि आज तक इस पर कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाया है। सुंदरता से भरपूर है यह पर्वत जाहिर सी बात है जिस क्षेत्र को परियों का देश कहा जाता है वह देखने में तो बेहद सुंदर और समृद्ध होगा ही,खैट पर्वत बिल्कुल वैसा ही है,यहां चारों तरफ हरियाली साल भर रहती है,यहां के पेड़ों पर फल फूल हमेशा लगे रहते हैं,हालांकि, अगर आप यहां से कोई पौधा बाहर लेकर जाएं और सोचें कि इसे वहां लगा दें तो कुछ ही दिनों में यह सूख जाएगा,कहते हैं कि इस पर्वत पर अखरोट और लहसुन की खेती अपने आप हो जाती है,यानी कोई इनके पेड़ नहीं लगाता है,लेकिन इनके पौधे अपने आप ही उग जाते हैं,खैट पर्वत से जुड़ी कहानी है प्रचलित-सदियों पहले टिहरी गढ़वाल के चौदाण गांव में राजा आशा रावत का राज हुआ करता था,राजा की छह पत्नियां थी लेकिन उनका कोई पुत्र नहीं था,राजा इससे बेहद बहुत परेशान रहने लगे थे,राजा की परेशानी देखकर उनकी पहली पत्नी ने कहा कि आप राजा हो तो आप 7 वां विवाह कर सकते हो,इसके बाद राजा आशा रावत पास ही के थात गांव गए तो वहां दीपा पवार नाम के एक शख्स ने उनकी खूब खातिरदारी की,दीपा पंवार ने जब राजा साहब से थात गांव आने का कारण पूछा तो राजा ने कहा,मैं आपकी छोटी बहन देवा से शादी करना चाहता हूं,ये सुन कर पूरा गांव उत्साहित हो उठा,इसके बाद राजा का विवाह देवा से हो गया और देवा चौदाण रानी बन गई,इसके कुछ समय बाद रानी देवा ने एक के बाद एक पूरे 9 बच्चों को जन्म दिया,जिनका नाम राजा ने कमला रौतेली,देवी रौतेली,आशा रौतेली,वासदेइ रौतेली,इगुला रौतेली,बिगुल रौतेली,सदेइ रौतेली,गरादुआ रौतेली और वरदेइ रौतेली रखा था,राजा आशा रावत और रानी देवा की ये बेटियां आम बच्चों की तरह नहीं थी,बल्कि चमत्कार से कम नहीं थीं 12 वर्ष की उम्र तक सभी बेहद सुंदर दिखने लगी थीं,कहा जाता है कि एक रात सभी बहनें गहरी नींद में सोई हुई थीं इस दौरान उनके सपने में सेम नागराज आए और उन्होंने सभी बहनों को अपनी रानी बना लिया,लेकिन जब सुबह उठते ही सभी बहनें जल स्रोत गईं तो उन्होंने देखा कि उनके गांव में अंधेरा पसरा पड़ा है जबकि ऊंचे पर्वतों पर धूप खिली हुई है,सूरज की इसी तलाश में जब सभी बहनें खैट पर्वत पहुंचीं तो आंछरी परियां बन गईं,स्थानीय लोगों की मान्यता है कि ये आज भी खैट पर्वत पर परियां बनकर घूमती हैं,दरअसल,उत्तराखंड में कुल देवता को प्रसन्न करने की पूजा विधि के दौरान भी राजा आशा रावत और रानी देवा की बेटियों का आंछरी परियां बनाने की ये कहानी उल्लेखित होती है. इसलिए खैट पर्वत को परियां का देश कहा जाता है। आचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ ज्योर्तिविद ग्राम कोठियाडा़,पो.ओ-बरसीर रुद्रप्रयाग श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान।

श्रीनगर गढ़वाल खैट पर्वत का वह गुप्त रहस्य जिसकी वजह से इस पूरे इलाके को कहा जाता है ‘परियों का देश’ देश के कई प्रमुख धार्मिक स्थल होने की वजह से उत्तराखंड देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है धर्म,संस्कृति और शास्त्र की नगरी हरिद्वार उत्तराखंड के साथ ही देश का प्रमुख तीर्थ स्थल है लेकिन उत्तराखंड इसके अलावा भी अपनी कई प्राचीन चीजों के लिए भी मशहूर है इन्हीं में से एक कुल देव की पूजा भी है। उत्तराखंड को वैसे भी देवी देवताओं का वास स्थल भी माना जाता है,इसीलिए यहां के लोग आज भी देवी देवताओं में काफ़ी प्रथम पूजनीय मानते हैं। उत्तराखंड में आज भी कई जगहें ऐसी भी हैं जो रहस्यों से भरी हुई हैं इन्हीं में से एक जगह खैट पर्वत भी है। आज आपको ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी खैट पर्वत के विषय में जानकारी दे रहे हैं। देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में स्थित इसी रहस्यमयी खैट पर्वत के बारे में बात करने जा रहे हैं। मान्यता है कि खैट पर्वत पर आंछरी अर्थात परियां वास करती हैं उत्तराखंड के गढ़वाल में परियों को आंछरी कहा जाता है इसीलिए इस पर्वत को परियों का देश भी कहा जाता है। खैट पर्वत समुद्र तल से करीब 10000 फीट की ऊंचाई पर है। यह पर्वत रहस्यमयी घनसाली इलाके में स्थित थात गांव से क़रीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है खैट पर्वत किसी जन्नत से कम नहीं है कहते हैं यहां आज भी लोगों को अचानक से परियों के दर्शन हो जाते हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि खैट पर्वत की परियां ही गांव की रक्षा करती हैं,खैट उत्तराखंड का रहस्यमयी पर्वत खैट इसलिए भी रहस्यमयी माना जाता है क्योंकि यहां पर सालभर फल और फूल खिले रहते हैं,इन फल और फूलों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने पर ये तुरंत ख़राब हो जाते हैं,लेकिन सबसे हैरत की बात तो ये है कि इस वीरान पर्वत पर स्वत ही अखरोट और लहसुन की खेती पनप जाती है,अखरोट के बागान लुकी पीड़ी पर्वत पर बने मां बराडी के मंदिर के गर्भ जोन गुफा के करीब ही हैं। रहस्यमयी खैटखाल मंदिर खैट पर्वत इलाक़े में स्थित थात गांव से 5 किमी की दूरी पर खैटखाल मंदिर है,जिसे रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र भी कहा जाता है स्थानीय लोग इसे परियों या अछरियों के मंदिर के रूप में भी पूजते है,यहां प्रतिवर्ष जून माह में मेला लगता है। कहा जाता है कि परियों को चटकीला रंग शोर और तेज संगीत पसंद नहीं है,इसलिए यहां इन बातों की मनाही है,इस इलाके में जीतू नाम के एक व्यक्ति की कहानी भी काफी चर्चित है कहते हैं जीतू की बांसुरी की तान पर आकर्षित होकर परियां उसके सामने आ गई और उसे अपने साथ ले गईं। अमेरिका की मैसासयुसेट्स विश्वविद्यालय ने इस पर्वत पर एक शोध किया था। इस शोध में उन्होंने पाया कि यहां कुछ ऐसी शक्ति है जो अपनी ओर आकर्षित करती है। मान्यता है कि इस पर्वत पर 9 परियां रहती हैं,जिन्हें स्थानीय भाषा में अछरियां कहते हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात या है कि यहां अनाज कूटने वाली ओखलियां जो समतल पर बनी होती है,खैट पर्वत पर ये ओखलियां दीवारों पर बनी हैं,गांव की रक्षा करती है परियां इस पर्वत के सबसे नजदीक है थात गांव,यहां के लोगों का मानना है कि उनके गांव की रक्षा हजारों सालों से परियां कर रही हैं,कुछ लोग तो यह भी दावा करते हैं कि उन्हें खैट पर्वत पर कई बार परियों के दर्शन भी हुए हैं,हालांकि आज तक इस पर कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाया है। सुंदरता से भरपूर है यह पर्वत जाहिर सी बात है जिस क्षेत्र को परियों का देश कहा जाता है वह देखने में तो बेहद सुंदर और समृद्ध होगा ही,खैट पर्वत बिल्कुल वैसा ही है,यहां चारों तरफ हरियाली साल भर रहती है,यहां के पेड़ों पर फल फूल हमेशा लगे रहते हैं,हालांकि, अगर आप यहां से कोई पौधा बाहर लेकर जाएं और सोचें कि इसे वहां लगा दें तो कुछ ही दिनों में यह सूख जाएगा,कहते हैं कि इस पर्वत पर अखरोट और लहसुन की खेती अपने आप हो जाती है,यानी कोई इनके पेड़ नहीं लगाता है,लेकिन इनके पौधे अपने आप ही उग जाते हैं,खैट पर्वत से जुड़ी कहानी है प्रचलित-सदियों पहले टिहरी गढ़वाल के चौदाण गांव में राजा आशा रावत का राज हुआ करता था,राजा की छह पत्नियां थी लेकिन उनका कोई पुत्र नहीं था,राजा इससे बेहद बहुत परेशान रहने लगे थे,राजा की परेशानी देखकर उनकी पहली पत्नी ने कहा कि आप राजा हो तो आप 7 वां विवाह कर सकते हो,इसके बाद राजा आशा रावत पास ही के थात गांव गए तो वहां दीपा पवार नाम के एक शख्स ने उनकी खूब खातिरदारी की,दीपा पंवार ने जब राजा साहब से थात गांव आने का कारण पूछा तो राजा ने कहा,मैं आपकी छोटी बहन देवा से शादी करना चाहता हूं,ये सुन कर पूरा गांव उत्साहित हो उठा,इसके बाद राजा का विवाह देवा से हो गया और देवा चौदाण रानी बन गई,इसके कुछ समय बाद रानी देवा ने एक के बाद एक पूरे 9 बच्चों को जन्म दिया,जिनका नाम राजा ने कमला रौतेली,देवी रौतेली,आशा रौतेली,वासदेइ रौतेली,इगुला रौतेली,बिगुल रौतेली,सदेइ रौतेली,गरादुआ रौतेली और वरदेइ रौतेली रखा था,राजा आशा रावत और रानी देवा की ये बेटियां आम बच्चों की तरह नहीं थी,बल्कि चमत्कार से कम नहीं थीं 12 वर्ष की उम्र तक सभी बेहद सुंदर दिखने लगी थीं,कहा जाता है कि एक रात सभी बहनें गहरी नींद में सोई हुई थीं इस दौरान उनके सपने में सेम नागराज आए और उन्होंने सभी बहनों को अपनी रानी बना लिया,लेकिन जब सुबह उठते ही सभी बहनें जल स्रोत गईं तो उन्होंने देखा कि उनके गांव में अंधेरा पसरा पड़ा है जबकि ऊंचे पर्वतों पर धूप खिली हुई है,सूरज की इसी तलाश में जब सभी बहनें खैट पर्वत पहुंचीं तो आंछरी परियां बन गईं,स्थानीय लोगों की मान्यता है कि ये आज भी खैट पर्वत पर परियां बनकर घूमती हैं,दरअसल,उत्तराखंड में कुल देवता को प्रसन्न करने की पूजा विधि के दौरान भी राजा आशा रावत और रानी देवा की बेटियों का आंछरी परियां बनाने की ये कहानी उल्लेखित होती है. इसलिए खैट पर्वत को परियां का देश कहा जाता है। आचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ ज्योर्तिविद ग्राम कोठियाडा़,पो.ओ-बरसीर रुद्रप्रयाग श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान।






