Spread the love


माया का शाब्दिक अर्थ है मा मतलब नहीं, या का मतलब ॓जो है, इसे भम्र ,मिथ्या ,स्वप्न या जादू भी कह सकते हैं है या फिर संसार में जो कुछ विचित्र बात होती है तो उसे भगवान की माया का नाम दे देते हैं कबीरदास जी इसके धोखे से बचने के लिए मनुष्य को आगाह करते हैं वे कहते हैं ॔माया महाठगिनी हम जानी ,,यह देह और देह के सम्बंधो से भी रूब रू हो सकती है यह रावण के पांच विकारों से सम्बंधित है परमाणु से समुद्र तक माया का पसारा है। माया हमें बांधती है यह सत्य से विमुख करती है रिश्तों की सहजता और जीवन के सत्य को समझने के लिए माया को समझना आवश्यक है श्री कृष्णजी सुदामा को माया के बारे में समझाते हैं यह कैसे मनुष्य को जकड़ लेती है और मनुष्य को कैसे नाच नचाती हैं लाभ-हानि,सुख -दुःख की धूप छांव में भटकाती है और ईश्वर से विमुख करती है यह मनुष्य को तीन बातों से भ्रमित करती हैं अज्ञान, वासना, अच्छाई , मोह अंहकार से उत्पन्न होता है माया के अनेक रूप हैं शरीर, संवेदना, बुद्धि, संसार,अविधा। यह मानवीय चेतना को ढक लेती है अल्पकालिक शारीरिक सुखो के प्रति मोह व लोभ पैदा करतीं हैं मोह से कामना,व कामना पूर्ण न होने पर क्रोध उत्पन्न होता है से किसी सत्यशक्ती सतगुरु के सान्निध्य से नाम दीक्षा व नाम सुमिरन अभ्यास से मोह को दूर कर बुद्धि विवेक के जागरण से माया के पर्दे को हटाया जा सकता है गुरू की प्रेम, करूणा व भक्ति द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार कर इस नाशवान संसार सागर से मुक्त हुआ जा सकता है ।

You cannot copy content of this page