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हम किसी को देखकर व अपना बनाने के लिए सर्वप्रथम जो कार्य करते हैं वह हमारे चेहरे की करूणा व आंखों से व मुस्कुराहट से जो भाव परिलक्षित होता है वह प्रेम का अनमोल भाव है प्रेम सिर्फ देना ही जानता है इसमें में मोलभाव की कोई गुंजाइश नही होती वह सब कुछ अपनी प्रेमी पर सब कुछ न्यौछावर कर देने की चाहत होती है जिससे वह खुशी से सराबोर हो जाता है वह उसकी सब कमियां को नजरंदाज कर उसे गले लगाने की उत्कंठा पैदा होती है हर पल,हर क्षण उसे पाने व मिलने की तङफ होती है यही निःस्वार्थ भाव प्रेम है जैसे अमीर खुसरो को अपने मुर्शिद हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया से मिलने की तड़प थी वह उनकी याद में विरह के गीत गाते रहते थे और आंसू बहाते रहते थे व रचनाएं लिखते रहते थे यीशु मसीह के कार्यों के माध्यम से परमेश्वर के प्रेम को प्राप्त करना यही सीख थी ईश्वर ही प्रेम है प्रेम ही ईश्वर है तुलसीदास जी कहते है ये कि ॓हरि व्यापत सर्वत्र समाना, प्रेम से प्रकट होई मै‌ जाना।।प्रभु कहते हैं मैं अपने भक्तों के प्रेम के वशीभूत होकर उनके पास दौड़ा चला आता हूं उनके दुःख दूर कर शाश्वत सुख प्रदान करता हूं सत्य ,समर्पण, भावुकता प्रेम का आधार है यह विवेक को संतुलित व सशक्त करने का माध्यम है प्रेम,। प्रेम के कारण संसार सुंदर है यह किसी देश, व्यक्ति,किसी गुरु, जन्म भूमि,पशु -पक्षियो के प्रति यह हो सकता है प्रेम के अभाव व विश्वास के बिना पृथ्वी पर जीवन व्यतीत करना असम्भव है सभी ग्रंथों का सार प्रेम में ही व्याप्त है प्रेम मे ही जीवन जीने का सार है।

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