श्रीनगर गढ़वाल। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में शीतकालीन फल पौधों (सेब आडू प्लम खुबानी नाशपाती अखरोट कीवी आदि) का उत्पादन होता है,जिन्हें फलत में आने के लिए एक निश्चित शीतकाल (चिलिंग) की आवश्यकता होती है। अच्छे गुणवत्ता युक्त फलों के उत्पादन हेतु आवश्यक है कि फल पौध उसी जलवायु या वातावरण (जहां चिलिंग पूरी हो सके) में उगाई गई हो। राज्य बनने से पहले जनपदों के प्रत्येक विकास खंड में एक या दो सक्रिय फल उत्पादन पौधशालाएं थी जिससे कई लोग को रोजगार मिला हुआ था। इन पौधशालाओं में क्षेत्र विशेष की जलवायु के आधार पर पौधालय स्वामी फल पौधों का उत्पादन करते थे। योजनाओं में जनपदीय अधिकारी इन फल पौधों का आवंटन उसी क्षेत्र विशेष में वरीयता के आधार पर करते थे। आवश्यकतानुसार जनपद की फल पौध की अतिरिक्त मांग मण्डलीय या निदेशालय स्तर से पूरी होती थी। राज्य बनने के बाद मैदान क्षेत्रों में विशेष रूप से विकासनगर रुद्रपुर रामनगर आदि क्षेत्रों में कई नई पौधशालाएं उद्यान विभाग द्वारा उत्तरप्रदेश फल पौधशाला अधिनियम 1976 एवं जनवरी 2020 के बाद उत्तराखंड फल पौधशाला अधिनियम 2019 के तहत पंजीकृत की गई। नियमों के विरुद्ध इन पौधशालाओं का पंजीकरण शीतकालीन फल पौधों के लिए भी कर दिया गया। मैदानी क्षेत्रों में गर्म जलवायु होने के कारण इन किस्मों के पौधे एक ही बर्ष में तैयार हो जाते हैं जबकि इन्हीं पौधों के उत्पादन हेतु पर्वतीय क्षेत्रों में दो से तीन वर्ष का समय लगता है। पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाले पौधों में फल आने हेतु कम तापमान की आवश्यकता होती है। इन पौधों को मैदानी क्षेत्रों में उगाने पर केवल बानष्पतिक वृद्धि ही होती है। इन्ही पौधों की सायन लेकर बने पौधे जब पर्वतीय क्षेत्रों में लगते हैं तो अधिकतर पौधों में फल ही नहीं आते क्योंकि साइन अफलत पौधों से ली हुई होती है। लाइसेंस निर्गत करते समय लाइसेंस प्राधिकारियों द्वारा किया गया नर्सरी एक्ट का उलंघन -उत्तर प्रदेश फल पौधशाला (वनियमन) अधिनियम, 1976) की धारा 4-1 इस अधिनियम के अधीन लाइसेंस के लिये प्रत्येक आवेदन-पत्र, लाइसेन्स प्राधिकारी को विहित प्रपत्र में और विहित फीस के साथ दिया जायेगा।
2- इस अधिनियम के अधीन कोई लाइसेंस नहीं दिया जायेगा,यदि लाइसेंस प्राधिकारी को यह प्रतीत हो कि (क) वह फल पौधशाला ऐसे फल के पौधो के,जिनके संबंध में लाइसेंस दिये जाने के लिये आवेदन किया गया है उचित उत्पादन के उपयुक्त नहीं है। उत्तराखंड फल पौधशाला अधिनियम 2019 की धारा 4 1-इस अधिनियम की धारा 3 के अधीन अनुज्ञा पत्र हेतु ऐसा प्रत्येक आवेदन अनुज्ञप्ति प्राधिकारी को निर्धारित प्रपत्र में और विहित फीस के साथ दिया जायेगा।
2-अनुज्ञा पत्र हेतु किये गये आवेदन के साथ उपलब्ध कराये गये साक्ष्यों की सत्यता हेतु गठित विभागीय समिति द्वारा पौधशाला का निरीक्षण किया जायेगा।
3-इस अधिनियम के अधीन कोई अनुज्ञा पत्र नहीं दिया जायेगा,यदि अनुज्ञप्ति प्राधिकारी को यह प्रतीत हो कि- (क) वह फल पौधशाला ऐसे फल के पौधों के लिये,जिनके संबंध में अनुज्ञा पत्र दिये जाने के लिए आवेदन किया गया है,उन्नत उत्पादन के लिये उपयुक्त नहीं है। उत्तरप्रदेश एवं उत्तराखण्ड के नर्सरी एक्टों में स्पष्ट है कि अनुज्ञापित प्राधिकारी लाइसेंस निर्गत से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि जिस फल पौध उत्पादन के लिए लाइसेंस निर्गत किया जा रहा है उन्नत उत्पादन के लिये उपयुक्त है कि नहीं। मैदानी क्षेत्रों में न तो अखरोट कीवी पर फल आते हैं नहीं हाइ-चिलिंग चाहने वाली अच्छी गुणवत्ता की सेब आडू प्लम खुबानी नाशपाती की फल पौध पर। नियमों को ताक पर रख कर उद्यान विभाग के अधिकारियों की मिली भगत के कारण मैदानी क्षेत्रों में अवस्थित पंजीकृत पौधशालाओं को शीतकालीन फल पौधों (सेब अखरोट कीवी आडू प्लम खुबानी आदि)का लाइसेंस निर्गत करने तथा योजनाओं में निदेशालय द्वारा इन्हीं नर्सरियों के शीतकालीन फल पौधों के आवंटन के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में पंजीकृत नर्सरियों से पौधे उठने बन्द हो गये जिस कारण अधिकतर पौधशाला स्वामियों ने पौध उत्पादन कम कर दिया है या बन्द कर दिया है। इससे जहां एक ओर पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार दिलाने वाली पौधशालाये बन्द होने के कगार पर है। वहीं मैदानी क्षेत्रों में उत्पादित शीतकालीन फल पौधों का पर्वतीय क्षेत्रों में रोपण के कुछ समय बाद सूख जाती है यदि किसी तरह जीवित भी रहती है तो अधिकतर में फल ही नहीं आते। मैदानी क्षेत्रों में अवैध रूप से शीतकालीन फल पौध उत्पादन हेतु निर्गत लाइसेंस नर्सरी एक्ट के अनुसार निरस्त होने चाहिए साथ ही दोषी पौधशाला स्वामियों एवं अवैध लाइसेंस निर्गत करने वाले अधिकारी /कर्मचारियों को दण्डित किया जाना चाहिए।